- मेवाड़ में गुहिल राजवंश की स्थापना गुहिल ने 566 ई. में की थी, इस वंश के नागादित्य को 727 ई. में भीलों ने मार डाला था ।
- नागादित्य के पुत्र बप्पा रावल ने 727 ई में गुहिल राजवंश की कमान संभाली एवं रावल राजवंश के संस्थापक बने । उसका मूल नाम कालभोज था, बप्पा रावल उसकी उपाधि थी ।
- बप्पा रावल (713-810) ने मोरी वंश के अंतिम शासक से चित्तोड़ दुर्ग छीन कर “मेवाड़” राज्य की नीव रखी ।
- उसके बाद मेवाड़ में काफ़ी लम्बे समय राजपूतों का शासन रहा था। बाद में ख़िलजी वंश के अलाउद्दीन ख़िलजी ने 1303 ई. में मेवाड़ के गहलौत शासक रतन सिंह को पराजित करके इसे दिल्ली सल्तनत में मिला लिया था।
- ‘सिसोदिया वंश’ के संस्थापक हम्मीरदेव ने मुहम्मद तुग़लक के समय में चित्तौड़ को जीत कर पूरे मेवाड़ को स्वतंत्र करा लिया। 1378 ई. में हम्मीरदेव की मृत्यु के बाद उसका पुत्र क्षेत्रसिंह (1378-1405 ई.) मेवाड़ की गद्दी पर बैठा।
- क्षेत्रसिंह के बाद उसका पुत्र लक्खासिंह 1405 ई. में सिंहासन पर बैठा। लक्खासिंह की मृत्यु के बाद 1418 ई. में इसका पुत्र मोकल राजा हुआ।
- मोकल के शासन काल में माना, फन्ना और विशाल नामक प्रसिद्ध शिल्पकार आश्रय पाये हुये थे। मोकल ने अनेक मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया तथा एकलिंग मंदिर के चारों तरफ़ परकोटे का भी निर्माण कराया। गुजरात शासक के विरुद्ध किये गये एक अभियान के समय उसकी हत्या कर दी गयी।
- 1431 ई. में मोकल की मृत्यु के बाद राणा कुम्भा मेवाड़ के राज सिंहासन पर बैठा।
- महाराणा कुंभा (1433-1468)राजस्थान के शासकों में सर्वश्रेष्ठ थे। मेवाड़ के आसपास जो उद्धत राज्य थे, उन पर उन्होंने अपना आधिपत्य स्थापित किया। 35 वर्ष की अल्पायु में उनके द्वारा बनवाए गए बत्तीस दुर्गों में चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़, अचलगढ़ जहां सशक्त स्थापत्य में शीर्षस्थ हैं, वहीं इन पर्वत-दुर्गों में चमत्कृत करने वाले देवालय भी हैं। उनकी विजयों का गुणगान करता विश्वविख्यात विजय स्तंभ भारत की अमूल्य धरोहर है। महाराणा कुंभा की हत्या उसके पुत्र उदयसिंह ने की थी।
- उदयसिंह के बाद उसका छोटा भाई राजमल (1473-1509 ई.) गद्दी पर बैठा। 36 वर्ष के सफल शासन काल के बाद 1509 ई. में उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र राणा संग्राम सिंह या ‘राणा साँगा’ मेवाड़ की गद्दी पर बैठा।
- राणा साँगा (शासनकाल 1509 से 1528 ई.) ने अपने शासन काल में दिल्ली, मालवा, गुजरात के विरुद्ध अभियान किया। राणा साँगा ने 1517 में इब्राहीम लोधी को खतौली के युद्ध में हराया था। 1527 ई. में खानवा के युद्ध में वह मुग़ल बादशाह बाबर से पराजित हुआ ।
- राणा साँगा के बाद मेवाड़ पर रतन सिंह (1528-1531), विक्रमादित्य (1531-1534), उदय सिंह (1537-1572), महाराणा प्रताप (1572-1597)
- एवं महाराणा अमर सिंह (1597-1620) प्रमुख मेवाड़ के शासक रहे ।
- अकबर ने सन् 1624 में मेवाड़ पर आक्रमण कर चित्तौड़ को घेर लिया, पर राणा उदयसिंह ने उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की थी और प्राचीन आधाटपुर के पास उदयपुर नामक अपनी राजधानी बसाकर वहाँ चला गया था।
- उनके बाद महाराणा प्रताप ने भी युद्ध जारी रखा और अधीनता नहीं मानी थी।
- महाराणा प्रताप (जन्म- 9 मई, 1540 ई. कुम्भलगढ़, मृत्यु- 29 जनवरी, 1597 ) का नाम भारतीय इतिहास में वीरता और दृढ़ प्रतिज्ञा के लिए अमर है। वे उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। वे अकेले ऐसे वीर थे, जिसने मुग़ल बादशाह अकबर की अधीनता किसी भी प्रकार स्वीकार नहीं की एवं अकबर के सेनापति राज मानसिंह से ‘हल्दीघाटी की लड़ाई’ 18 जून, 1576 ई. में हारने के बाद अकबर की दासता स्वीकारने की जगह जंगलों में रहना पसंद किया एवं छापेमार युद्ध जारी रखा, जहाँ 1597 में उनकी मृत्यु हो गयी ।
- मेवाड़ पर गहलौत तथा शिशोदिया राजाओं ने 1200 साल तक राज किया। महाराणा प्रताप की मृत्यु पर उसके उत्तराधिकारी अमर सिंह (1596-1620 ई.) ने मुगल सम्राट जहांगीर से संधि कर ली। इस प्रकार 100 वर्ष बाद मेवाड़ की स्वतंत्रता का भी अन्त हुआ। बाद में यह अंग्रेज़ों द्वारा शासित राज बना।
राजस्थान GK नोट्स