मोटे अनाज: जौ Coarse cereals: Barley- Hordeum distichon
जौ उत्तर भारत के बहुत-से क्षेत्रों में जौ एक प्रमुख रबी फसल है। दक्षिण भारत में इस फसल का न्यून महत्व है, लेकिन जिन क्षेत्रों में गेहूं का उत्पादन होता है, वहां जौ का भी सफलतापूर्वक उत्पादन होता है। इसका उपयोग चारा और पशुओं के खाद्यान्न में ही अधिक होता है।
उच्च तापमान एवं उच्च आर्द्रता वाली जलवायु में जौ का उत्पादन नहीं किया जा सकता। जौ के उत्पादन के लिए वैसे क्षेत्र सर्वाधिक उपयुक्त हैं, जहां न्यून मात्र में वर्षा होती है या वर्षा की अनिश्चितता रहती है। 75 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा इस फसल के पौधे के लिए उपयुक्त होती है। जिन क्षेत्रों में शीत ऋतु में ज्यादा ठंड पड़ती है, वहां इसकी खेती ज्यादा होती है। इसकी खेती के लिए लगभग पांच महीनों का समय चाहिए। जो क्षेत्र हमेशा गर्म और आर्द्र रहते हैं, वे जौ के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
जौ की खेती सामान्यतः हल्की मिट्टी में की जाती है, पर जल-सिंचित मध्यम दोमट मिट्टी भी (उर्वरता युक्त) इसकी कृषि के लिए उपयुक्त है। सिन्धु-गंगा के मैदान और पहाड़ी क्षेत्रों में ढलानों पर बलुई एवं कठोर दोमट मिट्टी में जौ की खेती की जाती है। राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार रागी के प्रमुख उत्पादक हैं।
जौ की बुआई छिंटाई द्वारा की जाती है। जब सिंचाई द्वारा खेती की जाती है, तब भूमि की गहराई 3 से 5 सेंटीमीटर तक होनी चाहिए और जब खेती वर्षा-जल से की जाती है, तब भूमि की गहराई 5 से 8 सेंटीमीटर तक होनी चाहिए और यह मिट्टी की नमी पर निर्भर करता है।
जौ की खेती मुख्यतः उत्तरी क्षेत्र में होती है। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और बिहार इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। मध्य प्रदेश और जम्मू एवं कश्मीर में भी जौ का उत्पादन होता है। जी की महत्वपूर्ण किस्में हैं-कैलाश, के. 24, के. 70, डोल्मा, आजाद, आर.डी. 108 आदि।
रागी यह कर्नाटक का प्रमुख अनाज है, जहाँ लाखों लोग इसका उपयोग मूल खाद्यान्न के रूप में करते हैं। कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडीशा, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखण्ड तथा हिमाचल प्रदेश में रागी का प्रचुर उत्पादन होता है।
जिन क्षेत्रों में 50 सेंटीमीटर से 100 सेंटीमीटर तक वर्षा होती है या सिंचाई की अच्छी व्यवस्था है, वहीं रागी की खेती होती है। दक्षिण भारत में रागी का उत्पादन ग्रीष्म ऋतु की फसल या रबी की फसल के रूप में होता है, परन्तु उत्तर भारत में इस फसल का उत्पादन खरीफ की फसल के रूप में होता है।
रागी की खेती के लिए लाल दोमट, काली एवं बलुई दोमट मिट्टी दक्षिण भारत में तथा गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में जलोढ़ मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है।
कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के सिंचाई-सुविधा से युक्त क्षेत्र में रागी की खेती वर्ष भर होती है। 60 से 80 दिनों के भीतर रागी के पौधे में फूल आ जाते हैं, जबकि लगभग 135 दिनों में इसका पर्याप्त विकास होता है, परन्तु यह रागी की किस्म और उत्पादन पद्धति पर निर्भर करता है। रागी की फसल छींटकर, रोपकर या स्थानांतरित कर उगायी जाती है। रागी की उपजायी जाने वाली मुख्य किस्में हैं-वी.एल. 149, एच.पी.बी. 1ई2, जी.पी.यू. 24।
बाजरा का उत्पादन चारा और खाद्यान्न दोनों के लिए समान रूप से होता है। इस फसल का खाद्यान्न के रूप में मुख्यतः उत्तर-पश्चिमी राजस्थान और गुजरात में होता है।
बाजरा की खेती गर्म एवं शुष्क जलवायु में होती है। इसकी खेती मुख्यतः जून और अक्टूबर के बीच होती है। शीत ऋतु की फसल के रूप में इस फसल का उत्पादन नवम्बर से फरवरी के बीच होता है, जबकि ग्रीष्म ऋतु की फसल के रूप में इस फसल का उत्पादन मार्च से जून के बीच होता है। कम वर्षा वाले क्षेत्र इस फसल के लिए उपयुक्त हैं। इस फसल का उत्पादन उन्हीं क्षेत्रों में अधिक होता है, जहां वार्षिक वर्षा 100 सेंटीमीटर से कम दर्ज की जाती है। बाजरा की वृद्धि के लिए 25° सेंटीग्रेड से 35° सेंटीग्रेड तक के तापमान को उपयुक्त माना जाता है। इस फसल का उत्पादन विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में होता है- पंजाब और उत्तर प्रदेश में दोमट मिट्टी में, राजस्थान और उत्तरी गुजरात में हल्की मिट्टी में, जबकि आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में कठोर चिकनी मिट्टी में और महाराष्ट्र में लाल एवं हल्की मिट्टी में। इस फसल के लिए सर्वाधिक उपयुक्त हल्की मिट्टी ही है।
इस फसल की खेती पृथक् एवं मिश्रित दोनों रूप में की जाती है। मिश्रित कृषि के रूप में इसका उत्पादन कपास, ज्वार या रागी के साथ किया जाता है। इस फसल का उत्पादन वर्ष में तीन या चार बार किया जा सकता है। इसकी खेती के लिए बहुत ही छोटे पैमाने पर भूमि को तैयार करना पड़ता है।
राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, आंध्र प्रदेश और पंजाब प्रमुख बाजरा-उत्पादक राज्य हैं।
भारत में बाजरा की अनेक प्रकार की किस्में उत्पादित की जाती हैं, जिनमें प्रमुख हैं- सी. ओ. 1, सी.ओ. 2, सी.ओ. 3, सी.ओ. 4, सी.ओ. 5, के. 1, एक्स. 3, एच.एस.वी. 67, एच. एच.बी. 50, डब्ल्यू.सी.सी. 75 आदि।
ज्वार शुष्क क्षेत्र की महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। इसे सोर्घुम भी कहा जाता है। मीठा सोर्घुम औद्योगिक अल्कोहल का निर्माण करता है। शुष्क भागों में जहां धान और गेहूं की खेती नहीं होती है, वहां इस फसल का व्यापक पैमाने पर उत्पादन होता है।
सामान्यतः, ज्वार की खेती मैदानी क्षेत्र में होती है, परन्तु 1200 मीटर तक की ऊंचाई वाले ढलान पर भी इसका उत्पादन सफलतापूर्वक हो रहा है। ज्वार क्षेत्र में सामान्यतः वार्षिक वर्षा 40 सेंटीमीटर से लेकर 100 सेंटीमीटर तक होती है। देश के अधिकांश क्षेत्रों में ज्चार की फसल जून (प्रथम सप्ताह) से अक्टूबर (प्रथम सप्ताह) के बीच उपजायी जाती है। सोर्घुम के उत्पादन के लिए मध्यम एवं गहरी काली मिट्टी सर्वाधिक उपयुक्त मानी जाती है। रबी ज्वार का उत्पादन काली कपास मिट्टी में होता है, जबकि खरीफ ज्वार का उत्पादन चिकनी मिट्टी में भी होता है (सीमित मात्र में)।
रबी ज्वार के लिए मुख्यतया दक्कन के पठार के क्षेत्र को जाना जाता है। मध्य प्रदेश और कर्नाटक में कुल ज्वार उत्पादन का 55 से 60 प्रतिशत तक रबी ज्वार होता है जबकि आंध्र प्रदेश में 50 प्रतिशत रबी ज्वार और 50 प्रतिशत खरीफ ज्वार का उत्पादन होता है। अन्य राज्यों में ज्चार उत्पादन के लिए खरीफ का मौसम ज्यादा महत्वपूर्ण है।
फसल के लिए खेत में अधिक तैयारी की आवश्यकता नहीं है। आजकल खेत में खाद के न्यूनतम अनुप्रयोग के साथ हल या ब्लेड हेरो के साथ खेत तैयार किया जाता है, पंक्ति में बीज बेधनी (सीड ड्रिल) से कतारबद्ध बुआई की जाती है, जुताई और श्रेसिंग या तो व्यक्ति द्वारा या बैलों द्वारा कराई जाती है।
ज्वार की खेती के लिए खेत में अत्यधिक तैयारी की आवश्यकता होती है। ज्वार का उत्पादन करने में जो राज्य प्रमुखता रखते हैं, वे हैं- मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश। देश के कुल ज्वार उत्पादन का 75 प्रतिशत से 80 प्रतिशत तक इन्हीं राज्यों से प्राप्त होता है। इसका उत्पादन तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में भी होता है। ज्वार की महत्वपूर्ण किस्में हैं- सी.एस.एच. 1, सी.एस.एच. 4, सी.एस.एच. 6, सी.एस.वी. 2, सी.एस.वी. 6, एम. 35-1 आदि।
ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी और जौ भारत में उगाए जाने वाले मुख्य मोटे अनाज हैं। यद्यपि इन्हें मोटा अनाज कहा जाता है परंतु इनमें पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है।
मक्का एक खाद्य फसल के साथ-साथ औद्योगिक कच्चा माल भी है। खाद्यान्नों के उत्पादन के क्षेत्र में धान और गेहूं के बाद भारत में मक्का का ही उत्पादन सर्वाधिक होता है। भारत में इसे 17वीं शताब्दी में पुर्तगालियों द्वारा लाया गया।
इस फसल का उत्पादन आर्द्र उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में होता है। यदि सिंचाई की समुचित व्यवस्था हो, तो शुष्क जलवायु में इस फसल की खेती की जा सकती है। दीर्घावधिक उष्णतापूर्ण गर्मी, पर्याप्त वर्षा और खरीफ के मौसम में छोटी वर्षा तथा शीततापूर्ण जादा मक्का के लिए उपयुक्ततम जलवायविक स्थिति है।
ग्रीष्म ऋतु में तापमान 20° सेंटीग्रेड से 25° सेंटीग्रेड के बीच घटता-बढ़ता रहता है। खरीफ के मौसम में तापमान 8° सेंटीग्रेड से 15° सेंटीग्रेड के बीच होना चाहिए। इस फसल को 75 सेंटीमीटर वर्षा की आवश्यकता होती है। इसके फसल के उत्पादन के लिए 120 से 170 दिनों की आवश्यकता होती है। मक्का की खेती के लिए उर्वर, गहरी और जल सोखने वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है। खेत में अधिक पानी जमा होना मक्का की खेती के लिए हानिकारक होता है। मक्का के उत्पादन के लिए उपयुक्त मृदा का pH मान 7.5 से 8.5 के बीच होना चाहिए।
भारत में मक्का की खेती के तीन प्रमुख मौसम हैं- खरीफ मुख्य मौसम है, रबी के मौसम में प्रायद्वीपीय भारत और बिहार में तथा उत्तरी भारत में जायद (वसन्त ऋतु) के मौसम में मक्का की खेती की जाती है। रबी और जायद के मौसम में मक्का की उच्च उत्पादकता रिकॉर्ड की गई है। मक्का की फसल की बुआई या तो छींटकर की जाती है या खेतों में हल चलाकर उसे रोपा जाता है। मक्का के बीज की छिंटाई विशेषकर उन क्षेत्रों में की जाती है, जहां वर्षा की निश्चितता ही ओर चारे वाले मक्के की खेती की जा रही हो।
उपज: ऊपरी गंगा घाटी, उत्तर-पूर्व पंजाव, दक्षिण-पश्चिमी कश्मीर और दक्षिणी राजस्थान में मक्का का उत्पादन व्यापक पैमाने पर होता है। देश के कुल मक्का-उत्पादन का 60 प्रतिशत उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजरथान और विहार से प्राप्त होता है। पंजाब, जम्मू एवं कश्मीर, गुजरात, हिमाचल प्रदेश तथा आंध्र प्रदेश में भी मक्का का उत्पादन होता है।
अखिल भारतीय समन्वित मक्का विकास योजना के तहत उच्च उपज वाले संकर बीज एवं साधारण बीज की अनेक किस्में विकसित की गई हैं- गंगा 101, रंजित, दक्कन, गंगा 5, गंगा सुरक्षित 2, हिस्टार्च, गंगा 4, हिमालया 123, गंगा 3 और वी.एल. 54।