राजस्थान में किसान आंदोलन | Farmers Movement Information in Rajasthan
राजस्थान में किसान आंदोलन Farmers Movement Information in Rajasthan – जागीरदारो द्वारा किसानों का आर्थिक शोषण के कारण राजस्थान के हर क्षेत्र में किसान आंदोलन प्रारंभ हुए राजस्थान में किसान आंदोलन (Rajasthan me Kisan Andolan) से संबंधित महत्वपूर्ण Information का समावेश इस पोस्ट में किया गया है यह पोस्ट GK से संबंधित आपके ज्ञान को बेहतर बनाने के लिए सहायक है
राजस्थान में किसान आंदोलन-Rajasthan me Kisan Andolan
बिजौलिया किसान आंदोलन 1897-1941
Rajasthan ka Bijoliya Kisan Andolan – भारत का प्रथम अहिंसात्मक एवं असहयोगात्मक किसान आंदोलन बिजोलिया किसान आंदोलन था
- बिजोलिया कृषक आंदोलन का सफल नेतृत्व विजय सिंह पथिक ने किया था
- विजय सिंह पथिक ने बिजोलिया के आंदोलन का नेतृत्व 1916 में किया था
- बिजोलिया किसान आंदोलन को भारत का एकमात्र पंच बोर्ड किसान आंदोलन भी बोला जाता है
- विजय सिंह पथिक का मूल नाम भूपसिंह था
- विजय सिंह पथिक जो कि बिजोलिया किसान आंदोलन में भाग लेने से पहले टॉडगढ़ अजमेर में नजरबंद थे
- बिजोलिया किसान आंदोलन के मुख्य कारणों में चंवरी कर और तलवार बंधाई नामक करो से उपजा कृषक असंतोष भी माना जाता है
- चंवरी कर किसानों द्वारा अपनी पुत्री के विवाह अवसर पर प्रति विवाह ₹5 दिया जाने वाला कर था जो ठाकुर किशन सिंह द्वारा 1903 में लगाया गया था
- तलवार बंधाई जागीरदार के उत्तराधिकारी हेतु वसूला गया शुल्क था जो ठाकुर पृथ्वी सिंह द्वारा 1906 में लगाया गया था
- विजय सिंह पथिक को किसान आंदोलन का जनक भी कहा जाता है
- राजस्थान केसरी और नवीन राजस्थान नामक समाचार पत्रों का बिजोलिया किसान आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान था दोनों ही समाचार पत्रों के संपादक विजय सिंह पथिक थे
- राजस्थान सेवा संघ की स्थापना 1919 में वर्धा महाराष्ट्र में विजय सिंह पथिक ने की थी
बेंगु किसान आंदोलन ,चित्तौड़गढ़ 1921-23
Bangu Kisan Andolan – इस किसान आंदोलन का नेतृत्व रामनारायण चौधरी ने किया था बेंगू किसान आंदोलन में तरुण राजस्थान नामक समाचार पत्र का महत्वपूर्ण योगदान रहा था
- इस किसान आंदोलन में मेवाड़ रियासत ने किसानों की समस्याओं के हल हेतु ट्रेंचआयोग का गठन किया
- बेंगू किसान आंदोलन में 1921 में मेनाल किसान सभा में किसानों और ठाकुर अनूप सिंह के मध्य हुए समझौते को बोल्शेविक समझौता कहा जाता है
- बेंगू किसान आंदोलन गोविंदपुरा हत्याकांड के लिए विख्यात रहा है 13 जुलाई 1923 को भीलवाड़ा जिले में हुए इस हत्याकांड में रूपा जी धाकड़ और कृपा जी धाकड़ शहीद हो गए थे
बूंदी किसान आंदोलन
Bundi Kisan Andolan – नानक जी भील डाबी हत्याकांड बूंदी किसान आंदोलन का प्रमुख शहीद था नानक जी भील को राजस्थान का प्रमुख शहीद बोला जाता है बूंदी किसान आंदोलन बरड क्षेत्र के किसानों ने किया था
- बूंदी किसान आंदोलन लगभग 17 वर्ष तक चला
- माणिक्य लाल वर्मा ने बिजोलिया किसान आंदोलन के दौरान पंछीड़ा गीत एवं नानक जी भील की स्मृति में अर्जी नामक गीत की रचना की थी
- बूंदी किसान आंदोलन मुख्यत: ‘राज्य’ प्रशासन के विरूद्ध था, जबकि मेवाड़ में किसानों ने अधिकांशत: ‘जागीर’ व्यवस्था का विरोध किया था । बूंदी किसान आंदोलन में स्त्रियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ।
- 1922 ई. में बूंदी किसान आंदोलन की शुरूआत लगान व बेगार के विरोध में हुई थी ।
- बूंदी व बिजौलिया के बीच पथरीला व कठोर भाग बरड़ कहलाता था । यद्यपि बेगूं भी बिजौलिया का पड़ोसी ठिकाना था किंतु बरढ़ की सीमाएं बिजौलिया के साथ सटी हुई थी ।
- 1922 ई. में बुंदी रियासत में बरड़ के किसानों द्वारा भंवरलाल सोनी के नेतृत्व मे बरड़ किसान आंदोलन प्रारंभ किया ।
- बूंदी आंदोलन का नेतृत्व पं. नयनूराम शर्मा (1926) ने किया ।
- बूंदी में स्थानीय आंदोलन का नेतृत्व स्वामी नित्यानंद ने किया ।
- इस आंदोलन में महिलाओं का नेतृत्व अंजना चौधरी ने किया ।
नोट – तरूण राजस्थान, नवीन राजस्थान ( अजमेर ) , राजस्थान केसरी ( वर्धा ), प्रताप ( कानपुर ) आदि समाचार-पत्रों में आंदोलनकारियों पर किये जा रहे जुल्मों का व्यापक रुप से प्रचार हुआ ।
- 2 अप्रेल, 1923 ई. में बूंदी के डाबी नामक स्थान पर किसानों का सम्मेलन हुआ, जहाँ पर पुलिस अधीक्षक इकराम हुसैन ने गोली चला दी । जिससे नानक जी भील व देवीलाल गुर्जर घटना स्थल पर ही झण्डा गीत गाते समय शहीद हो गये ।
- डाबी नामक स्थान वर्तमान में बूंदी जिले में स्थित है ।
- माणिक्यलाल वर्मा ने नानक भील की स्मृति में ‘ अर्जी ‘ शीर्षक से एक गीत लिखा जो आंदोलनकारियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना ।
मारवाड़ में किसान आन्दोलन
Marwar Kisan Andolan – 1923 ई. में मारवाड़ किसान आंदोलन की शुरूआत जोधपुर से हुई ।
मारवाड़ किसान आंदोलन का सूत्रधार मोतीलाल तेजावत था तथा इसको चलाने वाला जयनारायण व्यास था ।
- 1924 ई. में जयनारायण व्यास ने जोधपुर मे मारवाड़ हितकारिणी सभा का गठन किया और इसके माध्यम से मारवाड़ के किसानों को लागतों व बेगारों के विरुद्ध जागरूक बनाने का प्रयास शुरू किया ।
- मारवाड़ हितकारिणी सभा को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया ।
मण्डौर किसान आंदोलन
मण्डौर किसान आंदोलन चंदनमल बहड के नेतृत्व मे 1928-1940 ई मे हुआ
तौल आंदोलन
- 1920-21 ई० में इस आंदोलन की शुरुआत जोधपुर में चांदमल सुराना ने की ।
- मारवाड़ में 100 तोले का एक सैर होता था लेकिन राज्य सरकार ने ब्रिटिश भारत की तरह 8० तोले का एक सेर कर दिया, जिससे जनता में आक्रोश फैल गया ।
- चाँदमल सुरान ने मारवाड़ सेवा संघ के माध्यम से इसके विरोध में हडताल का आह्वान किया, जिससे सरकार को झुकना पड़ा व नया तौल जारी करने का निर्णय रद्द कर दिया ।
डाबडा हत्याकाण्ड
- शासन की दमनात्मक नीतियों के विरोध में मारवाड़ लोक परिषद और किसान सभा का संयुक्त अधिवेशन 13 मार्च 1947 ई॰ को डीडवाना के पास डाबडा गाँव ( नागौर ) में आयोजित हुआ, जिस पर ठिकाने के अनुचरों और जागीरदारों ने हमला कर दिया ।
- मथुरादास माथुर डाबड़ा के मुख्य आयोजक थे ।
- डाबड़ा में आयोजित किसान सम्मेलन में भाग लेने जा रहे लोक परिषद् व किसान सभा के नेताओं को जागीरदार के लोगों ने घेरकर मारा पीटा तथा डाबडा में पन्नाराम चौधरी को शरण देने के कारण मार दिया गया, इसमें चुन्नीलाल शर्मा, रूघाराम चौधरी, रामनारायण चौधरी ( लाडनूं ) , पन्नाराम चौधरी, जग्गू जाट तथा जागीरदारों में मेहताब सिंह आंदोलन के दौरान शहीद हुए ।
- मुम्बई से प्रकाशित ‘ वन्दे मातरम् ’ , जयपुर के लोकवाणी, जोधपुर के प्रजा सेवक, दिल्ली के हिन्दुस्तान टाइम्स अखबारों ने इस हत्याकाण्ड की घोर निन्दा की ।
चंदावल की दुःखद घटना – 1942 ई.
- 28 मार्च, 1942 ई. का मांगीलाल नामक लोक परिषद् के सदस्य ने उत्तरदायी सरकार दिवस मनाने के लिए आस-पास से सदस्यों को चंदावल में आमंत्रित किया ।
- यहाँ के ठाकुर ने उनके आयोजन को न होने दिया और सोजत (पाली) से आने वाले लोगों पर लाठीचार्ज करवाया, जिनमें कई व्यक्ति घायल हुए, मिट्ठा लाल, मारकण्डेश्वर, विजयशंकर, रामसुख, चांदमल, हरिराम आदि के गहरी चोटें लगी और उन्हें जोधपुर के राजकीय अस्पताल में भर्ती कराया गया ।
नीमूचणा किसान आंदोलन 1923-24
Nimuchana Kisan Andolan – अलवर किसान आंदोलन 14 मई 1925 को गठित नीमूचणा हत्याकांड के लिए प्रसिद्ध है
- 31 मई 1925 को नीमूचणा हत्याकांड तरुण राजस्थान समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ
- नीमूचणा हत्याकांड को महात्मा गांधी ने दोहरी डायरशाही और जलियांवाला बाग हत्याकांड से भी अधिक बुरा बताया था
- अलवर में 80 प्रतिशत भूमि खालसा के अंतर्गत थी जबकि केवल 20 प्रतिशत भूमि जागीरदारों के नियंत्रण में थी ।
- अलवर में अधिकांश किसानों को खालसा क्षेत्रों में स्थायी भू-राजस्व के अधिकार प्राप्त थे, जिन्हें ‘बिश्वेदारों’ के नाम से जाना जाता था । अलवर में भू-राजस्व की सबसे गलत पद्धति इजारा पद्धति लागू थी, जिसके तहत् ऊँची बोली बोलने वाले को निश्चित भूमि निश्चित अवधि के लिये दे दी जाती थी ।
- 1876 ई. में ब्रिटिश पद्धति पर अलवर में पहला भूमि बंदोबस्त किया गया ।
- नीमूचाणा किसान आंदोलन अलवर में हुआ नीमूचाणा गांव वर्तमान में अलवर जिले की बानसूर तहसील में है ।
- 1923 ई. में अलवर के शासक जयसिंह के द्वारा किसानों पर लाग/कर लगाए जाने के कारण इस आंदोलन की शुरूआत हुई ।
- इजारा पद्धति – ऊंची बोली बोलने वाले को निश्चित भूमि निश्चित अवधि के लिए दिया जाना इजारा पद्धति कहलाती है ।
- नीमूचाणा गाँव के किसान रघुनाथ की पुत्री सीतादेवी 14 मई, 1925 ई. को नीमूचाणा गाँव में महिलाओं का नेतृत्व करते हुए किसानों को ललकार रही थी कि – ” हम किसी भी हालत में ठिकाने को अधिक लागन नहीं देंगे । ‘
- 1924 ई में नीमूचाणा आंदोलन की समस्या को माधवसिंह व गोविंदसिंह ने पुकार नामक पुस्तक के माध्यम से उठाया ।
- 14 मई , 1925 ई को लगभग 800 किसान नीमूचाणा में इक्कठे हुए जिन पर अंग्रेज कमाण्डर छज्जूसिंह ने गोलियाँ चला दी, जिसमें तगभग 100 लोग शहीद हुए तथा संपूर्ण गाँव राख दो गया ।
- छज्जूसिंह को राजस्थान का ‘जनरल डायर’ कहा जाता है । महात्मा गाँधी ने पत्रिका ‘यंग इंडिया’ में नीमूचाणा काण्ड की जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड से वीभत्स कहते हुए दोहरे हत्याकाण्ड ( दोहरी डायरशाही ) की संज्ञा दी ।
- तरूण/नवीन राजस्थान ( विजयसिंह पथिक ) व प्रताप ( गणेश शंकर विद्यार्थी ) ने नीमूचाणा घटना को प्रकाशित किया ।
- इसे जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड के नाम से भी जाना जाता है ।
शेखावटी किसान आंदोलन
- शेखावाटी किसान आंदोलन के दौरान राम नारायण चौधरी ने डेल्ली हैरोल्ड ( लंदन ) का प्रमुखता से प्रयोग आंदोलन को प्रभावी मुद्दा बनाने में किया था
- सरदार हरलाल सिंह जाट किसान आंदोलन शेखावाटी सीकर के ख्याति प्राप्त नेता थे
- 1921 ई. में शेखावाटी क्षेत्र में ‘ चिडावा सेवा समिति ‘ के गठन के पश्चात् आंदोलन की शुरूआत मानी जाती है ।
- शेखावाटी क्षेत्र में रामनारायण चौधरी ने किसानों में जागृति पैदा की थी ।
- इस क्षेत्र में किसान आंदोलन का श्रीगणेश सीकर ठिकाने से हुआ ।
- शेखावाटी किसान आंदोलन का निर्णायक दौर 1931 -32 ई. में चला तथा 1934-35 ई. में सभी ठिकानों पर गतिशील हो गया ।
- शेखावाटी किसान आंदोलन हाऊस आफ कॉमन ( इंग्लैंड ) मे भारी बहस का मुद्दा बना इसे उठाने वाले लाॅरेन्स थे ।
- इस किसान आंदोलन के तहत् मंडावा ठिकाना में देवीबख्श ने नागरिक अधिकारों की घोषणा की ।
- शेखावाटी जकात आन्दोलन का नेतृत्व पं. नरोत्तम लाल जोशी ने किया
- शेखावाटी में पांच प्रमुख ठिकाने बिसाऊ, डूंडलोद, मण्डावा, मलसीसर व नवलगढ थे । इन पाँच ठिकानों को पंच माणे कहा जाता था ।
सीकर किसान आंदोलन
- 1922 ई. में सीकर के नए राजा ठाकुर कल्याण सिंह द्वारा 25 से 50 प्रतिशत तक भूमि लगान वसूल करने के साथ ही सीकर में किसानों का व्यापक आंदोलन प्रारंभ हुआ ।
- अक्टूबर 1925 ई. में अखिल भारतीय जाट महासभा का अधिवेशन अजमेर के समीप पुष्कर में आयोजित हुआ ।
- अखिल भारतीय जाट महासभा के सहयोग से 1931 ई. में सीकर के जाटों ने राजस्थान जाट क्षेत्रीय सभा की स्थापना की ।
- 1932 ई. में बसंत पंचमी के पर्व पर जाट सभा का आयोजन किया । इसमें 60 हजार जाट सम्मिलित हुए ।
- सितम्बर 1933 मे पलसाना में जाट सभा का आयोजन किया गया ।
- गोविन्दम हनुमानपुरा (दूलडा) एक स्वतन्त्रता सेनानी शेखावाटी किसान आन्दोलन का नेता था
- 25 अप्रेल, 1934 ई. को सीकर के कटराथल में सरदार हरलाल की पत्नी किशोरी देवी जाट ने 10 ,000 महिलाओं के नेतृत्व में विशाल महिला सम्मेलन आयोजित किया । इस सम्मेलन में उत्तमा देवी के द्वारा भाषण दिया गया ।
- शेखावाटी किसान आंदोलन के प्रमुख केन्द्र पलसाना, कटराथला ‘गोठड़ा एवं कुंदन गाँव ( सीकर )
खुडी गोली काण्ड
- 1935 ई. में सीकर के खुडी गाँव में किसानों पर कैप्टन वेब ने लाठीचार्ज करवाया, जिसमें चार किसान मारे गए । खुडी कांड का प्रकाशन खण्डवा से प्रकाशित समाचार-पत्र कर्मवीर में हुआ ।
कूदन गोली काण्ड
- सीकर ठिकाने के विशेष अधिकारी वैब ने अप्रैल, 1935 ईं. को कुदन व गोठड़ा भूकरान गाँवों पर धावा बोल दिया व किसानों का नरसंहार किया । जिसमें 4 लोग मारे गए ।
- कूदत गाँव का हत्याकाण्ड इतना बीभत्स था कि ब्रिटेन की संसद के महत्वपूर्ण सदन हाउस आफ कामन्स में भी इस पर चर्चा हुई ।
- 26 मई , 1935 ई. को ‘सीकर दिवस ‘ मनाया गया ।
जाट प्रजापति महायज्ञ
- ठाकुर देशराज के निर्देशन में सीकर में 1934 ई. में 20वीं सदी का सबसे बडे और विराट महायज्ञ का आयोजन हुआ, जिसमें 100 मन घी की आहूति दी गई । इसमें 35 लाख लोगों ने भाग लिया ।
जयसिंहपूरा काण्ड
- 1934 ई. में ठाकुर ईश्वरी सिंह ने जयपुर के जयसिंहपुरा गाँव में किसानों पर गोलियाँ चलाई ।
- इस काण्ड को जयसिंहपूरा किसान हत्याकाण्ड के नाम से जाना जाता है ।
- इस हत्याकाण्ड के पश्चात ईश्वरीसिंह व उसके साथियों पर मुकदमा चलाया गया व उन्हें सजा हुईं ।
- जयपुर राज्य में यह प्रथम मुकदमा था, जिसमें जाट किसानों के हत्यारों को सजा दिलाना संभव हो सका ।
- दैनिक अर्जुन ने इस दशा का भयावह ब्यौरा दिया ।
- जून, 1934 ई. में ‘जयसिंहपुरा शहीद दिवस’ मनाया गया ।
- जयपुर प्रशासन ने पुलिस महानिरिक्षक एफ एस. यंग को इस काण्ड की जाँच के लिए भेजा गया ।
प्रमुख हत्याकांड
- जयसिंह पुरा हत्याकांड 21 जून 1934
- खूडी गांव हत्याकांड 25 मार्च 1935
- कुंदन हत्याकांड 26 मई 1935 इस हत्याकांड ने शेखावाटी किसान आंदोलन को राष्ट्रीय भर में चर्चा का विषय बना दिया था
अलवर किसान आंदोलन
- 1921 ई. में इस आंदोलन की शुरूआत अलवर में हुई । अलवर में जंगली सुअरों को रोधों में पाला जाता था, जिनको रियासत की पाबंदी के कारण मारा भी नहीं जा सकता था ।
- ये जंगली सुअर फसलों फो नष्ट कर देते थे । अत: किसानों ने आंदोलन का रास्ता अपनाया, परिणामस्वरूप अलवर महाराजा ने सूअरों को मारने की आज्ञा दे दी तथा रोधों को हटा दिया गया
मेव किसान आंदोलन
- सन् 1923-24 ई. मे लागू किया गया भू-राजस्व बंदोबस्त मेव किसानों में असंतोष उत्पन्न करने वाला सिद्ध हुआ ।
- 1932 ई. में मेव किसान आंदोलन मेवात ( अलवर, भरतपुर) में मोहम्मद अली के नेतृत्व में हुआ ।
- मेव किसान आंदोलन की समाप्ति 1934 ई. में हुई ।
- अलवर के महाराजा जयसिंह को देश निकाला दे दिया गया ।
- 26 फरवरी 1944 ई. को अलवर में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया ।
- 5 फरवरी 1947 ई को भरतपुर में प्रजा परिषद् के नेतृत्व में बेगार विरोधी दिवस मनाया गया ।
मेवाड का जाट किसान आंदोलन
- 22 जून 1880 ई. मे फतेहसिंह के द्वारा किसानों पर कर लगाये जाने के कारण इस आंदोलन की शुरूआत हुई ।
- यह आंदोलन चितौड़गढ के मातृकुण्डिया ( राश्मी तहसील ) स्थान से जाटों के द्वारा शुरू हुआ ।
- मातृकुण्डिया को राजस्थान का हरिद्वार कहा जाता हैं ।
भरतपुर का शुद्धि आंदोलन
- 1928 ई. में भरतपुर के राजा कृष्णसिंह ने इस आंदोलन की शुरूआत की ।
- ब्रिटिश सरकार ने कृष्णसिंह को हटाकर डंकन मैकेजी को राज्य का नया प्रशासक बना दिया, जिस कारण यह आंदोलन शुरू हुआ ।
डोगरा काण्ड
- 4 अप्रेल, 1935 ई. में ज्वाला प्रसाद शर्मा ने अजमेर के पुलिस अधिकारी पी एन डोगरा की हत्या की योजना बनाई ।
- इस योजना में डोगरा बच गया तथा उसका सहयोगी इस्पेकटर सलालुद्दीन मारा गया ।
बीकानेर किसान आंदोलन
1937 ई ॰ में लाग-बाग के संबंध में बीकानेर में प्रथम किसान आंदोलन जगजीवन चौधरी के नेतृत्व में उदासर ( बीकानेर ) में शुरू हुआ । बीकानेर किसान आंदोलन को दो भागों में विभक्त कर सकते है
- प्रथम भाग गंगनहर से जुडा हुआ था ।
- दूसरा भाग जागीरी गाँव से जुड़ा हुआ था ।
बीकानेर षड्यंत्र
- 1931 ई. के दूसरे गोलमेज सम्मेलन लंदन में महाराजा गंगासिंह भाग लेने के लिए गये ।
- राजस्थान का एकमात्र राजा महाराजा गंगासिंह था, जिसने 1930, 1931, 1932 के लंदन में हुए तीनों गोलमेज सम्मेलनों में भाग लिया था ।
- बीकानेर रियासत के चंदनमल बहड़ ने महाराजा गंगासिंह की विरोधी नीतियों को बीकानेर दिग्दर्शन पत्रिका में छापा । अत: महाराजा गंगासिंह को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इन विरोधी नीतियों के छपने पर नीचा देखना पड़ा । इसके पश्चात चंदनमल बहड़ पर झूठा मुकदूमा चलाया गया और उन्हें कठोर सजा दी गई ।
- इस घटना को बीकानेर षड्यंत्र के नाम से जाना जाता है ।
रायसिंह नगर की घटना
- बीकानेर प्रजा परिषद् के नेतृत्व में दूसरा किसान आंदोलन रायसिंह नगर की घटना को लेकर हुआ ।
- प्रजा परिषद् ने 17 जुलाई 1946 ई. को संपूर्ण बीकानेर राज्य में किसान दिवस मनाया गया ।
कांगड़ काण्ड
- बीकानेर के किसान आंदोलन के इतिहास की अंतिम महत्वपूर्ण घटना 1946 ई. का कांगड़ काण्ड थी ।
- बीकानेर की रतनगढ़ तहसील के कांगड़ा गाँव के जागीरदार ने 1946 ई. में अकाल के बावजूद किसानों से कर वसूली का प्रयास किया, जिसके विरूद्ध किसानों ने सफल आंदोलन किया ।
दुधवा खारा आंदोलन
- 1922 ई. में बीकानेर रियासत के दूधवा खारा नामक स्थान पर यह आंदोलन चलाया गया ।
- दूधवा खारा वर्तमान में चूरू में है ।
- दूधवा खारा आन्दोलन के हनुमानसिंह बुडानिया बीकानेर रियासत की पुलिस सेवा में भर्ती थे ।
- दूधवा खारा आंदोलन का नेतृत्व मघाराम वैद्य, रघुवर दयाल तथा हनुमानसिंह आर्य ने किया ।
- खैतू बाई ने दूधवाखारा किसान आंदोलन मे महिलाओं का नेतृत्व किया ।
- बीकानेर रियासत के दूधवाखारा व कांगड़ा गांव के किसानों ने जागीरदारों के अत्याचार व शोषण के विरुद्ध आंदोलन किया।
- दूधवा खारा किसान आंदोलन चूरू के नेता हनुमान सिंह की जेल में 65 दिन की भूख हड़ताल के कारण मृत्यु हो गई थी
तसीमो कांड
- 1947 ई. में धौलपुर के तसीमो नामक स्थान पर एक सभा नीम के पेड़ के नीचे हुई तथा नीम पर तिरंगा झगडा फहराया गया ।
- जब धौलपुर पुलिस इस तिरंगे को उतारने पहुंची तो पुलिस की गोली से छत्तर सिंह व पंचम सिंह शहीद हो गए ।
- इस स्थान पर प्रतिवर्ष 11 अप्रैल को मेला भरता है ।
तिजारा दंगे/काण्ड
- 1933 ई. में अलवर में साम्प्रदायिक दंगे भड़के
लसोडिया आंदोलन
- राजपूताना के दक्षिणी क्षेत्र के भीलों में जागृति हेतु संत मावजी ने यह आंदोलन चलाया था ।
भौराईपाल घटना
- कुछ भीलों ने 13 जून, 1881 ई. को भौराईपाल के एक फकीर को मौत के घाट उतार दिया ।
मेयो कॉलेज बम केस
- 1934 ई. में वायसराय की अजमेर यात्रा के दौरान उनकी हत्या करने के इरादे से क्रांतिकारी फतेहचंद ने मेयो कॉलेज के पास हथियारों के बेग छिपाए ।
- परन्तु पुलिस को घटना से पूर्व सूचना मिलने के कारण छापा मारकर हथियार बरामद कर लिये गये ।
होर्डिंग्ज बम काण्ड
- 23 दिसम्बर, 1912 ई. को दिल्ली के तत्कालीन गवर्नर जनरल हार्डिग्ज के जुलूस पर रासबिहारी बोस की योजना के अनुसार पंजाब नेशनल बैंक ( चाँदनी चौक दिल्ली ) की छत पर चढकर जोरावर सिंह बारहठ, बसंत कुमार विश्वास तथा अर्जुनलाल सेठी ने बम फेंका ।
- इस काण्ड में अर्जुनलाल सेठी को बेलूर जेल में भेज दिया गया ।
चूरू का धर्मस्तुप
- 26 जनवरी 1930 ई. को चंदनमल बहड़ तथा गोपालदास ने चूरू के धर्म स्तूप पर तिरंगा फहराया ।
- बीकानेर में सामाजिक जनजागृति फैलाने वाले पण्डित कन्हैयालाल ढूण्ड व उनके शिष्य गोपालदास थे ।
- इस सभा द्वारा लडकियों के लिए पुत्री पाठशाला व दलितों के लिए कबीर पाठशाला की स्थापना की ।
रावला-घडसाना आंदोलन
- 2004 में यह आंदोलन श्रीगंगानगर जिले में हुआ । इस आंदोलन के सूत्रधार हेतराम बेनीवाल है ।
- इस आंदोलन के कार्यकर्ता श्योपत सिंह मक्कासर व सतलेखासिंह हैं ।
- रावला-घड़साना आंदोलन में चंदूलाल शहीद हुआ । रावला-घड़साना आंदोलन के लिए सर्वप्रथम केजरीवाल आयोग की स्थापना की गई ।
- केजरीवाल आयोग के पश्चात इसकी जाँच गोयल आयोग को सौंपी गई ।