राजस्थान के बारे में रोचक तथ्य
1. पाली में बुलेट बाबा का मंदिर, हैरतअंगेज है चमत्कार की कहानी:
यहां पर मूर्ति नहीं, बाइक से लिया जाता है आशीर्वाद: राजस्थान के पाली में स्थित ओम बन्ना सा का मंदिर अन्य सभी मंदिरों से बिल्कुल अलग है। इस मंदिर की विशेषता यहां भगवान की मूर्ति नही, बल्कि एक मोटरसाइकिल और उसके साथ रखी ओम सिंह राठौर की फोटो है, जिसकी लोग पूजा करते हैं।
2. यहां भक्त के रूप में ये वानर करता है हनुमान जी की सेवा:
जिस तरह भगवान श्रीराम के भक्त हनुमान थे, ठीक उसी तरह अजमेर के बजरंगगढ़ में भी हनुमान जी का एक भक्त वानर रूप में सामने आया है जिसका नाम रामू है। रामू वर्षों से हनुमान जी के इस मंदिर की पहरेदारी कर रहा है। रामू पूरा दिन बजरंगगढ़ की पहरेदारी करने के साथ-साथ तिलक लगवाना, मंदिर की घंटी बजाना, गिलास से उठाकर पानी पीना, बालाजी के भजन पर नृत्य करना जैसे कई अद्भूत क्रियाकलाप करता है। रामू पूरा समय मंदिर में ही रहता है, यहीं खाता-पीता है, सोता है।
3. सूर्यास्त के बाद राजस्थान के इस शहर में रूकने पर बन जाते हैं पत्थर:
मंदिरों की शिल्प कला के लिए विख्यात किराडू राजस्थान के बाड़मेर जिले में स्थित है। यहां के मंदिरों का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था। किराडू को राजस्थान का खजुराहों भी कहा जाता है। खजुराहो जैसा दर्जा पाने के बाद भी यह जगह पिछले 900 सालों से वीरान है। दिन में जरूर यहां कुछ चहल-पहल देखी जा सकती है लेकिन सूर्यास्त होते ही यह जगह वीरान हो जाती है। माना जाता है कि यहां सूर्यास्त के बाद जो भी रूकता है वह पत्थर में बदल जाता है।
4. जयबान तोप:
जयबाण तोप विश्व की सबसे बड़ी तोप है, जो राजस्थान के जयपुर की शान है। यह तोप जयगढ़ किले में स्थित है और राजस्थान के इतिहास की अमूल्य धरोहर है। जयबाण तोप की मारक क्षमता 22 मील (लगभग 35.2 कि.मी.) है।
5. ब्लू सिटी:
जोधपुर थार के रेगिस्तान के बीच अपने ढेरों शानदार महलों, दुर्गों और मन्दिरों वाला प्रसिद्ध पर्यटन स्थल भी है। वर्ष पर्यन्त चमकते सूर्य वाले मौसम के कारण इसे ‘सूर्य नगरी’ भी कहा जाता रहा है। यहां स्थित मेहरानगड़ दुर्ग को घेरे हुए हजारों नीले मकानों के कारण इसे ‘नीली नगरी’ के नाम से भी जाना जाता था।
6. राजस्थन का एक ऐसा गांव जहां है भूतों का डेरा कुलधरा (भूतों का गांव):
जैसलमेर से केवल 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थिति है एक ऐसा गांव जहां रात के अंधेरे में कोई भी जाना पसंद नहीं करता है क्योंकि यहां हरपल ऐसा अनुभव होता है कि कोई आसपास चल रहा है। इस गांव में अंधेरा होते ही महिलाओं के बात करने, उनकी चूडियों और पायलों की आवाज हमेशा ही वहां के माहौल को भयावह बनाते हैं।
7. इस दरगाह में हिंदू-मुस्लिम साथ मनाते हैं जन्माष्टमी:
राजस्थान के शेखावाटी में शक्कर बार बाबा की दरगाह कौमी एकता की जीवंत मिसाल है। यहां सभी धर्मों के लोगों को अपनी पद्धति से पूजा अर्चना करने का अधिकार है। कौमी एकता के प्रतीक के रूप में यहां प्राचीन काल से कृष्ण जन्माष्टमी के दिन विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों से हिंदुओं के साथ मुसलमान भी पूरी श्रद्धा से शामिल होते हैं।
8. यहां खाते हैं प्रेमी प्यार की कसमें, मांगते हैं साथ रहने की मन्नतें:
प्रेम तथा धार्मिक आस्था की प्रतिक ‘लैला मजनूं की मज़ार’ राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले की अनूपगढ तहसील में भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसे बिन्जौर गाँव में स्तिथ है। लैला-मजनू का ये अंतिम स्मारक पाकिस्तान से महज़ 2 किलो मीटर दूर है। माना जाता है कि लैला-मजनू ने अपने प्यार में विफल होने पर यही जान दी थी। ख़ास बात यह रही कि जीते-जी वे नही मिल पाये लेकिन मरने के बाद उन दोनो की मज़ारे पास-पास है। इस जगह पर हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही श्रद्धालु सर झुकाते है।
9. ब्रह्मा मंदिर:
संसार भर में जगत पिता ब्रह्मा का एकमात्र मंदिर राजस्थान के पुष्कर में स्थित है। मान्यता है कि मुगल शासक औरंगजेब के शासन काल के दौरान अनेकों हिंदू मंदिरों को ध्वस्त किया गया। ब्रह्मा जी का यही एकमात्र मंदिर है जिसे औरंगजेब छू तक नहीं पाया। इस मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी में हुआ था। यहां मंदिर के साथ ही सुंदर और पवित्र झील भी है। जिसे पुष्कर झील कहा जाता है।
10. भूतों का गांव भानगढ़:
देश-विदेश में भूतों के बेसेरे के नाम से चर्चित भानगढ़ का प्रेतग्रस्त किला राजस्थान के जयपुर से 80 किलोमीटर दूर स्थित है। 1573 में आमेर के राजा भगवंतदास द्वारा बनवाए गए भानगढ़ किले के रातों रात खण्डहर में तब्दील हो जाने के बारे में कई कहानियाँ मशहूर हैं। यहां सूर्यास्त के बाद किसी को भी रूकने नहीं दिया जाता है। कहते है यहां रात में भूतों का बाजार लगता है।
11. थार की वैष्णों देवी हैं तनोट माता:
जैसलमेर से लगभग 120 किमी दूर स्थित है तनोट देवी का मंदिर, जो जैसलमेर के भूतपूर्व भाटी शासकों की कुल देवी मानी जाती हैं। वर्तमान में इस मंदिर में सेना तथा सीमा सुरक्षा बल के जवान पूजा करते हैं, यह जैसलमेर के सेना के जवानों की देवी के रूप में विख्यात हैं। इन माता को थार की वैष्णों देवी भी कहा जाता है। सन् 1965 ई. में तनोट में देवी मंदिर के सामने भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में भारत की विजय का प्रतीक विजय स्तम्भ भी स्थापित हैं।
12. मां करणी देवी मंदिर :
मां करणी देवी का विख्यात मंदिर राजस्थान के बीकानेर से लगभग 30 किलोमीटर दूर जोधपुर रोड पर गांव देशनोक की सीमा में स्थित है। इसे चूहे वाले मंदिर के नाम से भी देश और दुनिया के लोग जानते हैं। ऐसी मान्यता है कि किसी श्रद्धालु को यदि यहां सफेद चूहे के दर्शन होते हैं, तो इसे बहुत शुभ माना जाता है।
13. ये है अरावली क्षेत्र की सबसे ऊँची चोटी, नाम है ‘गुरू शिखर’:
माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है। माउंट आबू में अनेक पर्यटन स्थल हैं। जिनमें से एक है गुरू शिखर। अरावली क्षेत्र की सबसे ऊँची चोटी है ‘गुरू शिखरÓ। जो माउंट आबू से 15 किमी. की दूरी पर स्थित है। यह 1722 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इस पर्वत की चोटी पर गुरू दत्तात्रय का एक प्राचीन मंदिर है। जोकि भगवान दत्तात्रय को समर्पित है।
14. श्री वीर तेजाजी के नाम की ताँती बाँधने पर सर्पदंश जहर का कोई असर नहीं होता :
तेजाजी राजा बाक्साजी के पुत्र थे। बचपन में ही उनके साहसिक कारनामों से लोग आश्चर्यचकित रह जाते थे। एक बार अपने हाली (साथी) के साथ तेजा अपनी बहन पेमल को लेने उसकी ससुराल गए। बहन पेमल की ससुराल जाने पर वीर तेजा को पता चलता है कि मेणा नामक डाकू अपने साथियों के साथ पेमल की ससुराल की सारी गायों को लूट ले गया। वीर तेजा अपने साथी के साथ जंगल में मेणा डाकू से गायों को छुड़ाने के लिए गए। रास्ते में एक बांबी के पास भाषक नामक सांप घोड़े के सामने आ जाता है एवं तेजा को डँसना चाहता है।
तब तेजा उसे वचन देते हैं कि अपनी बहन की गाएं छुड़ाने केबाद मैं वापस यहीं आऊंगा, तब मुझे डँस लेना। अपने वचन का पालन करने के लिए डाकू से अपनी बहन की गाएं छुड़ाने के बाद लहुलुहान अवस्था में तेजा नाग के पास आते हैं। तेजा को घायल अवस्था में देखकर नाग कहता है कि तुम्हारा तो पूरा शरीर कटा-पिटा है, मैं दंश कहां मारुं। तब वीर तेजा उसे अपनी जीभ पर काटने के लिए कहते हैं।
वीर तेजा की वचनबद्धता को देखकर नाग उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहता है कि आज के दिन (भाद्रपद शुक्ल दशमी) से पृथ्वी पर कोई भी प्राणी, जो सर्पदंश से पीडि़त होगा, उसे तुम्हारे नाम की ताँती बाँधने पर जहर का कोई असर नहीं होगा। उसके बाद नाग तेजाजी की जीभ पर दंश मारता है। तभी से भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजाजी के मंदिरों में श्रृद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और सर्पदंश से पीडि़त व्यक्ति वहां जाकर तांती खोलते हैं।