पाबूजी राजस्थान Paabooji GK
राजस्थान के लोक देवता पाबूजी राठौड़ का जन्म वि.संवत 1313 में जोधपुर ज़िले में फलोदी के पास कोलू नामक गाँव में हुआ था। पाबूजी के पिताजी का नाम धाँधल जी राठौड़ था। धाँधल जी एक दुर्गपति थे ।
पाबूजी राठौड़ का विवाह अमरकोट के निवासी सोढ़ा राणा सूरजमल की बेटी के साथ हुआ था। पाबूजी राठौड़ ने फेरे लेते हुए सुना कि कुछ चोर एक अबला देवल चारणी की गायों को अपहरण कर ले जा रहे हैं। पाबूजी ने उस अबला औरत को उसकी गायों की रक्षा का वचन दिया था कि वो उनकी गायों की रक्षा करेंगे । पाबूजी गायों की रक्षा करते-करते वीरगति को प्राप्त हो गये
पाबूजी को लक्ष्मणजी का अवतार मना जाता है। राजस्थान में इनके यशगान स्वरूप ‘पावड़े’ (गीत) गाये जाते हैं व मनौती पूर्ण होने पर फड़ भी बाँची जाती है। ‘पाबूजी की फड़’ पूरे राजस्थान में विख्यात है।
प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को पाबूजी के मुख्य ‘थान’ (मंदिर गाँव कोलूमण्ड) में विशाल मेला लगता है, जहाँ भक्तगण हज़ारों की संख्या में आकर उन्हें श्रृद्धांजलि अर्पित करते हैं।
राजस्थान के लोक जीवन में कई महान व्यक्तित्व देवता के रूप में सदा के लिए अमर हो गए। इन लोक देवताओं में कुछ को ‘पीर’ की संज्ञा दी गई है। एक जनश्रुति के अनुसार राजस्थान में पाँच पीर हुए हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं- पाबूजी, हड़बूजी, रामदेवजी, मंगलियाजी, मेहाजी