- अलवर एवं भतरपुर जिलों का क्षेत्र मेव जाति की बहुलता के कारण मेवात के नाम से जाना जाता है। अतः यहां की बोली मेवाती कहलाती है।
- यह अलवर की किशनगढ़, तिजारा, रामगढ़, गोविन्दगढ़, लक्ष्मणगढ़ तहसीलों तथा भरतपूर की कामां, डीग व नगर तहसीलों के पश्चिमोत्तर भाग तक तथा हरियाणा के गुड़गांव जिला व उ. प्रदेश के मथुरा जिले तक विस्तृत है।
- लालदासी एवं चरणदासी संत सम्प्रदायों का साहित्य मेवाती भाषा में ही रचा गया है। चरण दास की शिष्याएं दयाबाई व सहजोबाई की रचनाएं इस बोली में है।
- मेवाती बोली पर ब्रजभाषा का प्रभाव बहुत अधिक दृष्टिगोचर होता है। उत्तरप्रदेश की सीमा से लगे भरतपुर, धौलपुर और अलवर जिलों में बृज बोली अधिक प्रचलित है।
- मेवाती में कर्मकारक में लू विभक्ति एवं भूतकाल में हा, हो, ही सहायक क्रिया का प्रयोग होता है।
राजस्थान GK नोट्स