- राजस्थान के मध्य-पूर्व भाग में मुख्य रुप से जयपुर, किशनगढ़, अजमेर, टौंक में बोली जाती है।
- ढूँढाड़ी पर गजराती, मारवाड़ी एवं ब्रजभाषा का प्रभाव समान रूप से मिलता है।
- इसका प्रमुख उप-बोलियों में हाड़ौती, किशनगढ़ी, तोरावाटी, राजावाटी, अजमेरी, चौरासी, नागर, चौल आदि प्रमुख हैं।
- ढूँढाड़ी में गद्य एवं पद्य दोनों में प्रचुर साहित्य रचा गया। संत दादू एवं उनके शिष्यों ने इसी भाषा में रचनाएं की। इस बोली को जयपुरी या झाड़शाही भी कहते हैं।
- इसका बोली के लिए प्राचनीनतम उल्लेख 18 वीं शदी की आठ देस गुजरी पुस्तक में हुआ है।
- इस बोली में वर्तमान काल में ‘छी’, ‘द्वौ’, ‘है’ आदि शब्दों का प्रयोग अधिक होता है।
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