राजस्थान राज्य का निर्माण एवं एकीकरण के चरण (राजस्थान GK अध्ययन नोट्स)

  • पहला चरण (‘मत्स्य यूनियन’) 18 मार्च 1948: सबसे पहले अलवर, भरतपुर, धौलपुर, व करौली नामक देशी रियासतों का विलय कर तत्कालीन भारत सरकार ने 1 1948 मे अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर ‘मत्स्य यूनियन’ के नाम से पहला संघ बनाया। 18 मार्च 1948 को मत्स्य संघ का उद़घाटन हुआ और धौलपुर के तत्कालीन महाराजा उदयभानसिंह को राजप्रमुख, महाराजा करोली को उपराज प्रमुख और अलवर प्रजामंडल के प्रमुख नेता श्री शोभाराम कुमावत को मत्स्य संघ का प्रधानमंत्री बनाया गया। इसकी राजधानी अलवर रखी गयी थी।
  • दूसरा चरण (‘राजस्थान संघ’) 25 मार्च 1948: राजस्थान के एकीकरण का दूसरा चरण 25 मार्च 1948 को स्वतंत्र देशी रियासतों कोटा, बूंदी, झालावाड, टौंक, डूंगरपुर, बांसवाडा, प्रतापगढ, किशनगढ और शाहपुरा को मिलाकर बने ‘राजस्थान संघ’ के बाद पूरा हुआ। राजस्थान संघ में विलय हुई रियासतों में कोटा बड़ी रियासत थी, इस कारण इसके तत्कालीन महाराजा महाराव भीमसिंह को राजप्रमुख बनाया गया।
  • तीसरा चरण (‘संयुक्त राजस्थान’)18 अप्रैल 1948: राजस्थान संघ में उदयपुर रियासत का विलय कर ‘संयुक्त राजस्थान’ का निर्माण हुआ | पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा इसका उद्घाटन किया गया | महाराणा मेवाड –भूपालसिंह राजप्रमुख व् माणिक्यलाल वर्मा प्रधानमंत्री बने | उदयपुर को इस नए राज्य की राजधानी बनाया गया | कोटा महाराव भीमसिंह को उपराजप्रमुख बनाया गया |
  • चौथा चरण (‘वृहत राजस्थान”) 30 मार्च 1949: 30 मार्च, 1949 में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर ‘वृहत्तर राजस्थान संघ’ बना था। यही राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है। देशी रियासतों जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर का विलय करवाकर तत्कालीन भारत सरकार ने 30 मार्च 1949 को वृहत्तर राजस्थान संघ का निर्माण किया, जिसका उदघाटन भारत सरकार के तत्कालीन रियासती और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया। हालांकि अभी तक चार देशी रियासतो का विलय होना बाकी था, मगर इस विलय को इतना महत्व नहीं दिया जाता, क्योंकि जो रियासते बची थी वे पहले चरण में ही ‘मत्स्य संघ’ के नाम से स्वतंत्र भारत में विलय हो चुकी थी। जयपुर महाराज सवाईमानसिंह को आजीवन राजप्रमुख, उदयपुर महाराणा भूपालसिंह को महाराज प्रमुख, कोटा के महाराज श्री भीमसिंह को उपराजप्रमुख व श्री हीरालाल शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाया गया | श्री पी. सत्यनारायण राव की अध्यक्षता में गठित कमेठी की की सिफारिशों पर जयपुर को राजस्थान की राजधानी घोषित किया गया | हाई कोर्ट जोधपुर में, शिक्षा विभाग बीकानेर में, खनिज और कस्टम व् एक्साइज विभाग उदयपुर में, वन और सहकारी विभाग कोटा में एवँ कृषि विभाग भरतपुर में रखते का निर्णय किया गया|
  • पांचवा चरण (‘वृहत संयुक्त राजस्थान’) 15 अप्रैल 1949: 15 अप्रेल 1949 को भारत सरकार ने शंकरराव देव समिति की सिफारिश को ध्यान में रखते हुए मत्स्य संघ को वृहत राजस्थान में मिला दिया | भारत सरकार ने 18 मार्च 1948 को जब मत्स्य संघ बनाया था तभी विलय पत्र में लिख दिया गया था कि बाद में इस संघ का राजस्थान में विलय कर दिया जाएगा। इस कारण भी यह चरण औपचारिकता मात्र माना गया। भारत सरकार ने शंकरराव देव समिति की सिफारिश को ध्यान में रखते हुए मत्स्य संघ को वृहत राजस्थान में मिला दिया | वहां के प्रधानमंत्री श्री शोभाराम को शास्त्री मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया |
  • छठा चरण ‘राजस्थान संघ’ 26 जनवरी 1950: भारत का संविधान लागू होने के दिन 26 जनवरी 1950 को सिरोही रियासत का भी विलय ग्रेटर राजस्थान में कर दिया गया। इस विलय को भी औपचारिकता माना जाता है क्योंकि यहां भी भारत सरकार का नियंत्रण पहले से ही था। दरअसल जब राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया चल रही थी, तब सिरोही रियासत के शासक नाबालिग थे। सिरोही रियासत के एक हिस्से आबू देलवाडा को लेकर विवाद के कारण इस चरण में आबू व् देलवाडा तहसीलों को बम्बई प्रान्त और शेष भाग को राजस्थान में मिलाने का फेसला लिया गया | लेकिन आबू और देलवाडा को बम्बई प्रान्त में मिलाने के कारण राजस्थान वासियों में व्यापक प्रतिक्रिया हुई | जिससे 6 वर्ष बाद राज्यों के पुनर्गठन के समय इन्हे वापस राजस्थान को देना पड़ा | 26 जनवरी,1950 को भारत के संविधान लागु होने पर राजपुताना के इस भू-भाग को विधिवत ‘राजस्थान’ नाम दिया गया |
  • सांतवा चरण (‘वर्तमान राजस्थान’) 1 नवंबर 1956: राज्य पुनर्गठन आयोग (श्री फजल अली की अध्यक्षता में गठित) की सिफारिशों के अनुसार सिरोही की आबू व् दिलवाडा तहसीलें, मध्यप्रदेश के मंदसोर जिले की मानपुरा तहसील का सुनेर टप्पा व अजमेर –मेरवाडा क्षेत्र राजस्थान में मिला दिया गया तथा राज्य के झालावाड जिले का सिरोंज क्षेत्र मध्यप्रदेश में मिला दिया गया |इस प्रकार विभिन्न चरणों से गुजरते हुए राजस्थान निर्माण की प्रक्रिया 1 नवम्बर, 1956 को पूर्ण हुई और इसी के साथ आज से राजस्थान का निर्माण या एकीकरण पूरा हुआ। भारत सरकार के तत्कालीन देशी रियासत और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके सचिव वी. पी. मेनन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। इनकी सूझबूझ से ही राजस्थान के वर्तमान स्वरुप का निर्माण हो सका।
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