बूंदी चित्रकला शैली Bundi Painting Style

राजस्थानी चित्रकला को बूंदी व कोटा चित्रशैली ने भी अनूठे रंगों से युक्त स्वर्मिण संयोजन प्रदान किया है। इस शैली का विकास राव सुरजन सिंह (1554-85) के समय के आरम्भ हो जाता है। उन्होने मुगलों का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया था अत: धीरे-धीरे चित्रकला की पद्धति में एक नया मोड़ आना शुरु हो जाता है।

  • अट्टालिकाओं के बाहर की ओर उभरे हुए गवाक्ष में से झाँकता हुआ नायक इसकी अपनी विशषता है।
  • इसके चित्रकार सुरजन,अहमद अली,रामलाल आदि हैं।
  • दीपक राग तथा भैरव रागिनी के चित्र राव रतन सिंह (1607-31) के समय में निर्मित हुए। राव रतन सिंह चूकि जहाँगीर का कृपा पात्र था, तथा उसके बाद राव माधो सिंह के काल में जो शाहजहाँ के प्रभाव में था, चित्र कला के क्षेत्र में भी मुगल प्रभाव निरन्तर बढ़ता गया। चित्रों में बाग, फव्वारे, फूलों की कतार, तारों भरी राते आदि का समावेश मुगल ढंग से किया जाने लगा।
  • बूंदी चित्रों में पटोलाक्ष, नुकीली नाक, मोटे गाल, छोटे कद तथा लाल पीले रंग की प्राचुर्यता स्थानीय विशेषताओं का द्योतक है जबकि गुम्बद का प्रयोग और बारीक कपड़ों का अंकन मुगली है। स्रियों की वेशगुषा मेवाड़ी शैली की है। वे काले रंग के लहगे व लाल चुनरी में हैं। पुरुषाकृतियाँ नील व गौर वर्ण में हृष्ट-पुष्ट हैं, दाढ़ी व मूँछो से युक्त चेहरा भारी चिबुक वाला है। वास्तुचित्रण प्रकृति के मध्य है। घुमावदार छतरियों व लाल पर्दो से युक्त वातायन बहुत सुन्दर प्रतीत होते हैं। केलों के कुज अन्तराल को समृद्ध करते हैं।
  • बूंदी चित्रों का वैभव चित्रशाला, बड़े महाराज का महल, दिगम्बर जैन गंदिर, बूंदी कोतवाली, अन्य कई हवेलियों तथा बावड़ियों में बिखरा हुआ है।
  • कोटा शैली अपनी स्वतंत्र अस्तित्व न रखकर बूंदी शैली का ही अनुकरण करती है। कोटा के उत्तम चित्र देवताजी की हवेली, झालाजी की हवेली व राजमहल से प्राप्त होते हैं।
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