पौधों में पोषण Nutrition in Plants

पोषण (Nutrition) शब्द की उत्पत्ति पोषक शब्द से हुई है। पोषक ऐसा पदार्थ है जिसे प्रत्येक जीवधारी अपने पर्यावरण (Environment) से प्राप्त करता है एवं इसका उपयोग ऊर्जा के स्रोत अथवा शारीरिक घटकों के जैव-संश्लेषण के लिए करता है।

पोषण की विधियाँ (Methods of nutrition): भोज्य पदार्थों की प्राप्ति के आधार पर जीवधारियों को दो समूहों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. स्वपोषी (Autotrophic nutrition): इस प्रकार के पोषण के अन्तर्गत जीव अपने भोज्य पदार्थ का निर्माण स्वयं करता है। सभी हरे पौधे, नील-हरित शैवाल (Blue green algae), कुछ जीवाणु तथा अधिकांश एककोशिकीय जीवों (Unicellular organisms) में स्वपोषी पोषण पाया जाता है। इस प्रकार से पोषण करने वाले जीव स्वपोषी (Autotrophs) कहलाते हैं।
  2. परपोषी (Heterotrophic nutrition): इस प्रकार के पोषण में जीव अपने भोज्य पदार्थ का संश्लेषण (निर्माण) स्वयं नहीं कर पाते बल्कि उन्हें वह दूसरे जीवों से प्राप्त करता है। इस प्रकार का पोषण सभी जन्तुओं, कवकों तथा कुछ एककोशिकीय जीवों में पाया जाता है। इस प्रकार से पोषण करने वाले जीवों को परपोषी या विषमपोषी (Heterotrophs) कहते हैं।

पौधों के पोषण में विभिन्न तत्वों की भूमिका (Role of different elements in plant nutrition): पौधों की वृद्धि के लिए 17 आवश्यक तत्वों की आवश्यकता होती है जिनमें से 9 तत्त्व दीर्घमात्रिक तथा शेष 8 लघुमात्रिक हैं। इनमें से किसी एक की कमी से पौधे का पूर्ण विकास नहीं होता है।

  1. दीर्घमात्रिक पोषक तत्व (Macronutrient elements): दीर्घमात्रिक पोषक तत्व के अन्तर्गत वे पोषक तत्त्व आते हैं, जिनकी पौधों को अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है। इसमें 10 तत्त्व होते हैं। ये हैं- कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम, मैग्नीशियम, कैल्सियम तथा सल्फर।
  2. लघुमात्रिक पोषक तत्व (Micronutrient elements): इसके अन्तर्गत वैसे पोषक तत्व आते हैं जिनकी पौधों को कम मात्रा में आवश्यकता होती है। लघुमात्रिक पोषक तत्वों की संख्या 8 है। ये हैं- लोहा, जस्ता, ताँबा, निकेल, मैंगनीज, बोरोन, मालिब्डेनम तथा क्लोरीन।
  3. क्रान्तिक तत्त्व (Critical elements): अधिकांश मृदाओं में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटैशियम की कमी हो जाती है। अतः भूमि की उर्वरता को बढ़ाने के लिए इन तत्वों को खाद के रूप में डाला जाता है। इसी कारण से इन तीन तत्वों (N, P एवं K) को क्रान्तिक तत्व कहते हैं। पौधों के पोषण में निम्नलिखित तत्वों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है—
  4. कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन: पौधे इन्हें अपनी आवश्यकतानुसार वायुमंडल एवं जल से ग्रहण करते हैं। कार्बन वायुमण्डल से कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में ग्रहण किया जाता है और उसके सहयोग से पौधा प्रकाश संश्लेषण की क्रियाकर अपने भोजन का निर्माण करता है। ऑक्सीजन जीवित कोशाओं के श्वसन में काम आती है। पौधों की कोशाभित्ति एवं जीवद्रव्य के निर्माण में ये तीनों ही तत्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  5. नाइट्रोजन: पौधे इसे वायुमण्डल से प्राप्त करते हैं। यह तत्व पौधों में प्रोटीन (Protein) तथा न्यूक्लिक अम्ल (Nucleic acid) के निर्माण के लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी होते हैं। इसकी कमी से पौधों की वृद्धि रुक जाती है, जबकि इसकी अधिकता होने से पौधों में फूल विलम्ब से उगते हैं।
  6. सल्फर: यह तत्व पौधों के प्रोटीन तथा जीवद्रव्य के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाता है। इस तत्त्व की कमी होने से पेड़ों एवं पौधों की पत्तियाँ पीली हो जाती हैं एवं पौधे में फल नहीं बनते हैं। यह तत्व पौधों की शाकीय वृद्धि को प्रोत्साहित करता है। यह जड़ का निर्माण करता है तथा बीज निर्माण को उत्तेजित करता है। यह दलहनी फसलों की जड़ों में गाँठों के निर्माण में मदद करता है।
  7. फॉस्फोरस: यह तत्व न्यूक्लिक अम्ल एवं फॉस्फोलिपिड पदार्थों में पाया जाता है। कोशाओं के निर्माण बीजों के निर्माण एवं फसलों की परिपक्वता में इस तत्व की अति महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
  8. पोटैशियम: पौधों की वृद्धि में पोटैशियम तत्त्व की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसकी कमी से पत्तियों पर अंगमारी (Blight) हो जाता है जिससे प्रोटीन संश्लेषण की क्रिया में रुकावट आती है।
  9. कैल्सियम: यह DNA तथा RNA को प्रोटीन से संयुक्त करने, क्रोमोसोम (गुण सूत्र) के निर्माण, वसा के संश्लेषण, कार्बोहाइड्रेट एवं एमिनो अम्ल के परिवहन में सहायक होता है। इसकी कमी होने से कुछ पौधों में बीज नहीं बनते एवं हरित लवक (Chloroplast) उचित ढंग से कार्य नहीं करते हैं।
  10. मैग्नीशियम: इस तत्व की प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह क्लोरोफिल में संयोजन कर प्रोटीन संश्लेषण में महत्वपूर्ण योगदान करता है। पौधों में मैग्नीशियम की कमी होने से वे पीले हो जाते हैं, जिसे हरिमहीनता (Chlorosis) कहते हैं।
  11. लोहा: यह तत्व पौधों में श्वसन क्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह क्रेब्स चक्र (Kreb’s Cycle) में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह पौधों के जीवद्रव्य तथा क्रोमेटिक में पाया जाता है। पौधों में लोहे की कमी होने से क्लोरोसिस या हरिमहीनता होता है।
  12. मैंगनीज: पौधों में इस तत्व की आवश्यकता क्लोरोफिल के निर्माण में होती है। यह नाइट्राइट से नाइट्रेट बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी कमी से पौधों की पत्तियाँ भूरी हो जाती हैं।
  13. ताँबा: यह श्वसन में उपयोग एन्जाइमों (Enzymes) में उपस्थित होता है। इसकी कमी से पौधों में हरिमहीनता (Chlorosis) होता है।
  14. जिंक: इस तत्त्व की कमी से पौधों की लम्बाई में वृद्धि रुक जाती है एवं पौधे बौने हो जाते हैं। साथ-ही-साथ फल का विकास नहीं हो पाता है तथा पौधों की पत्तियाँ छोटी रह जाती हैं। यह इन्डोल एसीटिक अम्ल (Indole Acetic Acid or IAA) के संश्लेषण में उपयोगी होती है।
  15. बोरोन: यह मुख्यतः शर्करा के ट्रान्सलोकेशन में सहायक होता है। इसकी कमी से पौधे के shoot tip नष्ट हो जाते हैं।
  16. मॉलिब्डेनम: यह नाइट्रोजन के मेटाबोलिज्म में मुख्य भूमिका निभाता है। इसकी कमी से फूलगोभी एवं पतगोभी में व्हिपटेल (whiptail) रोग होता है।

नोट:

  • धान का खैरा रोग जिंक की कमी से होता है।
  • मटर का मार्श रोग मैगनीज की कमी से होता है।
  • फूलगोभी का व्हिपटेल रोग (whiptail disease) मॉलिब्डेनम की कमी से होता है।
  • पत्तियों की हरिमहीनता (Chlorosis) रोग कैल्सियम, मैग्नीशियम तथा मॉलिब्डेनम की कमी से होता है।
  • नीबू का डाइबैक रोग (Dieback disease) कॉपर की कमी से होता है।
  • आम का लिटिल लीफ रोग जस्ता की कमी से होता है।
  • नींबू का लिटिल लीफ रोग कॉपर की कमी से होता है।
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