कवक Fungi

कवक हरितलवक (Chlorophyll) रहित, संकेन्द्रीय (Nucleated), संवहन ऊतक रहित (Non-vascular) थैलोफाइटा (Thallophyta) है। कवक का अध्ययन माइकोलॉजी (Mycology) कहलाता है। पर्णहरित विहीन होने के कारण कवक अपना भोजन स्वयं नहीं बना पाते हैं। अतः ये विविधपोषी (Heterotrophic) होते हैं। इसमें संचित भोजन ग्लाइकोजेन (Glycogen) के रूप में रहता है। इनकी कोशिका भित्ति (Cell wall) काइटिन (Chitin) की बनी होती है।

वासस्थान (Habitat): कवक संसार में उन सभी भागों में पाए जाते हैं जहाँ जीवित अथवा मृत कार्बनिक पदार्थ पाए जाते हैं। गोबर पर उगने वाले कवक को कोप्रोफिलस कवक (Coprophilous fungi) कहते हैं। नाखूनों तथा बालों में उगने वाले कवकों को किरेटिनोफिलिक (Keratinophilic) कहते हैं।

पोषण (Nutrition): पोषण के आधार पर कवक तीन प्रकार के होते हैं। ये हैं-

  1. सहजीवी (symbiotic)– ये कवक दूसरे पौधों के साथ-साथ उगते हैं तथा एक-दूसरे को लाभ पहुँचाते हैं। जैसे-लाइकोन (Lichen)।
  2. परजीवी (Parasitic): ये कवक अपना भोजन जन्तुओं एवं पौधों के जीवित ऊतकों से प्राप्त करते हैं। इस प्रकार के कवक सदैव हानिकारक होते हैं। जैसे- पक्सिनिया, अस्टिलागो।
  3. मृतोपजीवी (saprophyte): इस प्रकार के कवक अपना भोजन सदैव सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों से प्राप्त करते हैं। जैसे- राइजोपस (Rhizopus); पेनिसिलियम (Penicilium) मोर्चेला (Morchella) आदि।

कवक का आर्थिक महत्व

लाभदायक क्रियाएँ

  • वर्ज्य कार्बनिक पदार्थों का नाश करना कवकों का मुख्य लक्षण है। ये जन्तुओं एवं पौधों के अवशेषों को विघटित (Decompose) कर देते हैं।
  • एगरिकस छत्रक (Agaricus), गुच्छी (Morchella) आदि कवकों का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है।
  • एस्पर्जिलस (Aspergillus), पेनीसीलियम (PeniciIlium) जैसे कवकों का उपयोग पनीर उद्योग (Cheese industry) में होता है।
  • यीस्ट (Yeast) का उप्योह अल्कोहल उद्योग (Alcohol industry) में होता है।
  • कुछ यीस्ट जैसे सैकरोमाइसीज सेरविसी (Saccharomyces cervisiae) का उपयोग बेकरी उद्योग में डबलरोटी बनाने में होता है।
  • कवकों से कई प्रकार के अम्लों का निर्माण किया जाता है। एस्पर्जिलस, म्यूकर तथा साइट्रोमाइबीज द्वारा साइट्रिक अम्ल (Citric acid) का निर्माण किया जाता है। एस्पर्जिलस गेलोमाइसीज (Aspergillous gallomyces) तथा पेनिसीलियम ग्लाउकम (Penicillium glaucum) द्वारा गैलिक अम्ल (Gallic acid) प्राप्त किया जाता है। एस्पर्जिलस नाइजर (Aspergillus niger) द्वारा ग्लूकोनिक अम्ल (Gluconic acid) तथा राइजोपस निग्रिकेन्स (Rhizopus nigricans) द्वारा फ्युमेरिक अम्ल (Fumaric acid) प्राप्त किया जाता है।
  • कवकों से कई प्रकार के एन्जाइम (Enzyme) प्राप्त किए जाते हैं। एस्पर्जिलस ओराइजी (Aspergillus oryzae) से एमाइलेज (Amylase), यीस्ट (yeast) से इन्वर्टेज (Invertase) तथा पेनीसीलियम से पेक्टिनेज (Pectinase) एन्जाइम प्राप्त किए जाते हैं।
  • कवकों से कई प्रकार के विटामिनों का संश्लेषण (synthesis) किया जाता है। जैसे- स्ट्रेप्टोमाइसीज ग्रिसिकस (Streptomyces grisicus) नमक कवक से विटामिन B12 (Cyanocobalamin), यीस्ट (yeast) से विटामिन D (अर्गेस्टेराल) तथा असविया गोसीपी (Ashbya gossypi) द्वारा विटामिन B12 (Riboflavin) का संश्लेषण किया जाता है।
  • कवकों से कई प्रकार के एन्टीबायोटिक औषधियों का निर्माण किया जाता है। 1927 ई. में अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने PeniciIIium notaturn से पेनीसीलिन (Penicillin) नामक एन्टीबायोटिक प्राप्त किया था। क्लोरोमाइसीटीन (Chloromycetin), नीयोमाइसीन (Neomycin), स्ट्रेप्टोमाइसीन (streptomycin), टेरामाइसीन (Terramycin) आदि एन्टीबायोटिक औषधियाँ कवकों से ही प्राप्त किए जाते हैं।
  • कुछ कवक कीड़े-मकोड़ों द्वारा रोग फैलाने में नियंत्रण के काम में आते हैं।
  • यीस्ट (Yeast) एक एककोशिकीय मृतोपजीवी कवक है जिसमें क्लोरोफिल नहीं पाया जाता है। इस कारण ये अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते हैं। इसका पता सर्वप्रथम एन्टोनीबॉन ल्यूवेनहॉक ने लगाया था। इसका उपयोग मुख्यतः एल्कोहॉल, बियर, शराब तथा डबलरोटी बनाने में किया जाता है। लुई पाश्चर ने सर्वप्रथम यीस्ट के किण्वन (Fermentation) सम्बन्धी गुणों का पता लगाया था।

हानिकारक क्रियाएँ

  • राइजोपस, पेनीसीलियम आदि की कई जातियाँ भोजन को नष्ट कर देती हैं।
  • दैनिक जीवन में उपयोग में आनेवाले कई प्रकार की वस्तुओं जैसे-कपड़ा, चमड़े, कागज, लकड़ी आदि को कवक नष्ट कर देते हैं।
  • कुछ मशरूम (Mushroom) जहरीले होते हैं, जो देखने में सामान्य प्रतीत होते हैं किन्तु धोखे से खाए जाने पर मृत्यु हो जाती है। जैसे- असीनेटा, फेलोरडीस, लूसूला, लेक्टेरियस आदि।
  • पौधों में होनेवाले कई प्रकार के रोगों के लिए कवक मुख्य रूप से उत्तरदायी होते हैं। सरसों का सफ़ेद किट्ट रोग (White rust of crueifers), मूंगफली का टिक्का रोग (Tikka disease of groundnut), आलू का उत्तरभावी अंगमारी रोग (Late blight of potato), गन्ने का लाल सड़न रोग (Red rot of sugarcane), आलो का अंगमारी रोग (Early blight of Potato), चने का विल्ट रोग (Wilt disease of gram), सेब के फल का सड़ना (Fruit rot of apple), बाजरे का अर्गोट (Ergot of bajra), गेहूँ का लाल रस्ट (Red rust of wheat), गेहूं का ढीला स्मट (Loose smut of wheat), धान का प्रध्वंस रोग (Blast of rice), अंगूर का पाउडरी मिल्ड्यू (Powdery mildew of grapes) आदि पादप रोग विभिन्न प्रकार के कवकों द्वारा होते हैं।
  • कवक जन्तुओं में भी कई प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं। मानव में होने वाले एस्पर्जिलेसिस (फेफड़े का रोग), दाद (Ringvvorm), मेनिनजाइटिस (Meningitis), ओनीको माइकोसिस (नाखूनों का भूरापन होना), हिप्टोप्लाज्मोसिस (Hyptoplasmosis) आदि रोग कवकों द्वारा ही होते हैं। इसी प्रकार पशुओं में होने वाले एपलटेफुट, एस्पर्जिलोसिस, म्यूकरो माइकोसिस आदि रोग कवक द्वारा ही उत्पन्न होते हैं।

नोट:

 

  • कुछ कवक जो निमेटोड (Nematods) का भक्षण करते हैं, प्रीडीसियस कवक (Predaceous fungi) कहलाते हैं।
  • राइजोपास (Rhizopus) को Bread mould अथवा Pin mold तथा एस्पर्जिलस को Blue mold कहते हैं।
  • किण्वन की क्रिया में यीस्ट द्वारा इथाइल ऐल्कोहॉल तथा कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न होती है। यह कार्बन डाइऑक्साइड ठोस अवस्था में dry ice (शुष्क बर्फ) के नाम से बेचे जाते हैं।
  • एफ्लाटॉक्सिन (Arlatoxin) नामक पदार्थ एस्पर्जिलस फ्लैव्स (Aspergilius flavus) नामक कवक से प्राप्त किया जाता है जो कि विषैला (Poisonous) होता है।
  • एरगॉट (Ergot) क्लेवीसेप्स परपुरिया (Cleviceps purepurea) से प्राप्त किया जाता है, जो गर्भाशय के संकुचन के काम आता है।
  • LSD (Lysergic acid diethylamide) एक विभ्रमी (Hallucinogenic) पदार्थ है, जो क्लैवीसेट्स पेसपेलाई नामक कवक से प्राप्त किया जाता है।
  • एफ्लाटाक्सिन नामक पदार्थ पालतू पशुओं के लिए हानिकारक होता है।
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