ग्रन्थियों के प्रकार: अंत: स्रावी व बहिःस्रावी ग्रन्थियाँ

जन्तुओं में विभिन्न शारीरिक क्रियाओं का नियंत्रण एवं समन्वयन तंत्रिका, तंत्र के अतिरिक्त कुछ विशिष्ट रासायनिक यौगिकों के द्वारा भी होता है। ये रासायनिक यौगिक हार्मोन (Hormone) कहलाते हैं। हार्मोन शब्द ग्रीक भाषा (Gr. Hormaein = to stimulate or excite) से लिया गया है, जिसका अर्थ है- उत्तेजित करने वाला पदार्थ। हार्मोन का स्राव शरीर की कुछ विशेष प्रकार की ग्रन्थियों द्वारा होता है, जिन्हें अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ (Endocrine glands) कहते हैं। अन्तःस्रावी ग्रन्थियों को नलिकाविहीन ग्रन्थियाँ (Ductless glands) के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इनमें स्राव के लिए नलिकाएँ (Ducts) नहीं होती हैं। नलिकाविहीन होने के कारण ये ग्रन्थियाँ अपने स्राव हार्मोन्स को सीधे रुधिर परिसंचरण में मुक्त करती है। रुधिर परिसंचरण तंत्र द्वारा ही इनका परिवहन सम्पूर्ण शरीर में होता है।

ग्रन्थियों के प्रकार:

कशेरुकी जन्तुओं में तीन प्रकार की ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं। ये हैं-

(a) बहिःस्रावी ग्रन्थियाँ (Exocrine glands):

शरीर की ऐसी ग्रन्थियाँ जिनके द्वारा स्रावित स्राव को विभिन्न अंगों तक पहुँचाने के लिए वाहिनियाँ या नलिकाएँ होती हैं, बहिःस्रावी ग्रन्थियाँ (Exocrine Glands) कहलाती है। बहिःस्रावी ग्रन्थियों को नालिकयुक्त ग्रन्थियां (Duct glands) भी कहते हैं। बहिःस्रावी ग्रन्थियों के स्राव को एन्जाइम (Enzyme) कहा जाता है। स्वेद ग्रन्थि, दुग्ध ग्रन्थि, लार ग्रन्थि, श्लेष्म ग्रन्थि, अश्रु ग्रन्थि आदि बहिःस्रावी ग्रन्थि के प्रमुख उदाहरण हैं।

(b) अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ (Endocrine Glands):

बहिःस्रावी ग्रन्थियों के विपरीत अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ नलिकाविहीन (Ductless) होती हैं। अतः इन्हें नलिकाविहीन ग्रन्थियाँ (Ductless glands) भी कहते हैं। अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ नलिका (Duct) के अभाव में अपने स्राव को सीधे रुधिर परिसंचरण में मुक्त करती हैं। अन्तःस्रावी ग्रन्थियों द्वारा स्रावित स्राव को अन्तःस्राव या हार्मोन (Hormone) कहते हैं। ये हार्मोन फिर रुधिर के साथ उन अंगों तक चले जाते हैं, जहाँ इनका प्रभाव होना होता है। पीयूष ग्रन्थि, थाइरॉयड ग्रन्थि, अधिवृक्क ग्रन्थि, पैराथाइरॉयड ग्रन्थि पीनियल काय, थाइमस ग्रन्थि आदि प्रमुख अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ हैं।

(c) मिश्रित ग्रन्थियाँ (Mixed glands):

कुछ ग्रन्थियाँ ऐसी होती हैं जो बहिःस्रावी तथा अन्तःस्रावी दोनों ही प्रकार की होती हैं, उन्हें मिश्रित ग्रन्थियाँ कहते हैं। जैसे- अग्न्याशय (Pancreas)।

मानव शरीर की मुख्य अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ एवं उनसे स्रावित हार्मोन के कार्य एवं प्रभाव:

  1. पीयूष ग्रन्थि (Pituitary gland): यह कपाल (skull) की स्फेनॉइड (Sphenoid) हड्डी में सेलाटर्सिका (sellatureica) नामक गड्ढे में उपस्थित रहती है। यह तालु (Palate) एवं मस्तिष्क (Brain) के अधरतल के मध्य स्थित रहती है एवं उससे एक इन्फन्डीबुलम (Infundibulum) नाम छोटे वृन्त (stalk) से जुड़ी रहती है। इसका भार लगभग 0.6 ग्राम होता है। स्त्रियों में गर्भावस्था के दौरान यह कुछ बड़ी हो जाती है। पीयूष ग्रन्थि को मास्टर ग्रन्थि (Master Glands) भी कहा जाता है, क्योंकि यह अन्य अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के स्रवण को नियंत्रित करती है। साथ-ही-साथ यह व्यक्ति के स्वभाव, स्वास्थ्य, वृद्धि एवं लैंगिक विकास को भी प्रेरित करती है।

पीयूष ग्रन्थि से स्रावित होने वाले हार्मोन एवं उनके कार्य- पीयूष ग्रन्थि द्वारा निम्नलिखित हार्मोनों का स्राव होता है-

(i) वृद्धि हार्मोन (Growth hromone or somatotropic hormone): यह शरीर की वृद्धि विशेषतया हड्डियों की वृद्धि का नियंत्रण करता है। इसकी अधिकता से भीमकायता (Gigantism) अथवा एक्रोमिगली (Acromegaly) विकार उत्पन्न हो जाता है। इसके कारण मनुष्य की लम्बाई सामान्य से बहुत अधिक बढ़ जाती है तथा हड्डियाँ भारी व मोटी हो जाती हैं। बाल्यावस्था में इस हार्मोन के कम स्राव से शरीर की वृद्धि रुक जाती है। जिससे मनुष्य में बौनापन (Dwarfism) हो जाता है।

(ii) थाइरोट्रॉपिक या थाइरॉइड हार्मोन (Thyrotropic or thyroid stimulating hormone- STH): यह हार्मोन थाइरायड ग्रन्थि के कार्यों को उद्दीपित करता है। यह थाइरॉक्सिन (Thyroxine) हार्मोन के स्रवण को भी प्रभावित करता है।

(iii) एड्रिनोकॉर्टिको ट्रॉपिक हार्मोन (Adrenocortico tropic hormone—ACTH): यह हार्मोन अधिवृक्क ग्रंथि (Adrenal gland) के कॉर्टेक्स (Cortex) को प्रभावित कर उससे निकलने वाले हार्मोन को भी प्रेरित करता है।

(iv) गोनेडोट्रॉपिक हार्मोन (Gonadotropic hormone): यह हार्मोन जनन ग्रन्थियों (Gonads) की क्रियाशीलता को प्रभावित करता है। यह दो प्रकार का होता है-

(a) फॉलिकिल उत्तेजन हार्मोन (Follicle stimulating hormone—FSH): पुरुषों में यह हार्मोन शुक्रजन (spermatogenesis) को उद्दीपित करता है। स्त्रियों में यह हार्मोन अण्डाशय से अण्डोत्सर्ग (Ovulation) को प्रेरित करता है। यह अण्डाशय में फॉलिकिल की वृद्धि में सहायता करता है।

(b) ल्यूटीनाइजिंग हार्मोन (Lutenizing hormone-LH): पुरुषों में यह हार्मोन अन्तराली कोशिकाओं (Interstial cells) को प्रभावित कर नर हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन (Testosterone) को प्रेरित करता है, जबकि स्त्रियों में यह एस्ट्रोजन हार्मोन के स्राव को प्रेरित करता है।

(v) दुग्धजनक हार्मोन (Lactogenic hormone-LTH): यह दुग्धजनक हार्मोन है। इस हार्मोन का मुख्य कार्य शिशु के लिए स्तनों में दुग्ध स्राव उत्पन्न करना है। इस हार्मोन से कार्पसल्यूटियम (Corpus luteum) का स्राव भी शुरू होता है।  (vi) मिलेनोसाइट प्रेरक हार्मोन (Melanocyte stimulating hormone): निम्न जंतुओं एवं पक्षियों में यह हार्मोन मिलेनिन (Melanin) वर्णक के कणों को फैलाकर त्वचा के रंग की प्रभावित करता है। इसके फलस्वरूप त्वचा रंगीन होती है। मनुष्य में यह हार्मोन त्वचा पर चकते तथा तिल पड़ने को प्रेरित करता है।

(vii) वेसोप्रेसिन या एन्टीडाइयूरेटिक हार्मोन (Vasopressin or Antidiuratic hormone ADH): यह हार्मोन वृक्क की मूत्रवाहिनियों को जल पुनरावशोषण (Reabsorption) करने के लिए प्रेरित करता है। इसके अतिरिक्त यह रुधिर वाहिनियों को सिकोड़ कर रुधिर दाब (Blood pressure) बढाता है। यह शरीर के जल संतुलन में सहायक होता है। इस कारण इसे एन्टीडाइयूरेटिक (Antidiuratic) कहा जाता है। इस हार्मोन की कमी से उदकमेह या डायबिटीज इन्सिपिड्स नामक रोग हो जाता है।

(viii) ऑक्सीटोसीन (Oxytocin) या पाइटोसिन (Pitocin): यह हार्मोन गर्भाशय की अरेखित पेशियों में सिकुड़न पैदा करता है जिससे प्रसव पीड़ा (Labour pain) उत्पन्न होती है और बच्चे के जन्म में सहायता पहुँचाता है। यह स्तन से दुग्ध स्राव में भी सहायक होता है।

  1. अवटु ग्रन्थि (Thyroid gland): मनुष्य में यह ग्रन्थि द्विपिण्डक रचना होती है। यह ग्रन्थि श्वास नली या ट्रैकिया (Trachea) के दोनों तरफ लैरिंक्स (Larynx) के नीचे स्थित रहती है। यह संयोजी ऊतक की पतली अनुप्रस्थ पट्टी से जुड़ी रहती है, जिसे इस्थमस (Isthmus) कहते हैं। यह अनेक खोखली व गोल पुटिकाओं (Follicies) से मिलकर बनता है। इन पुटिकाओं की गुहा में आयोडीन युक्त गुलाबी रंग का कोलायडी पदार्थ स्रावित होता है, जिसे थाइरोग्लोब्यूलिन (Thyroglobulin) कहते हैं। थाइरॉइड ग्रन्थि का अन्तःस्राव या हार्मोन थाइरॉक्सिन (Thyroxine) तथा ट्रायोडोथाइरोनिन (Triodothyronine) है। इन दोनों ही हार्मोनों में आयोडीन (Iodine) अधिक मात्रा में रहता है।

अवटु ग्रन्थि से स्रावित हार्मोन एवं उनके कार्य

(i) थाइरॉक्सिन (Thyroxine): यह हार्मोन कोशिकीय श्वसन की गति को तीव्र करता है। यह शरीर की सामान्य वृद्धि विशेषतया हड्डियों, बाल इत्यादि के विकास के लिए अनिवार्य है। यह हार्मोन दूसरी अन्तःस्रावी ग्रन्थियों को भी प्रभावित करता है। यह पीयूष ग्रन्थि द्वारा स्रावित हार्मोन के साथ सहयोग कर शरीर में जल संतुलन का नियंत्रण करता है। बच्चों में थाइरॉक्सिन की कमी के कारण अवटुवामनता (Cretinism) नामक रोग उत्पन्न हो जाता है। इस रोग में 30 वर्ष की उम्र वाला वयस्क 4 अथवा 5 वर्ष का बालक प्रतीत होता है। यौवनावस्था (Puberty) के पश्चात इस हार्मोन की कमी के कारण शरीर में मिक्सिडिमा (Myxioedema) नामक रोग उत्पन्न होता है। मनुष्य में एक लम्बे समय तक इस हार्मोन की कमी के कारण हाइपोथाइरॉयडिज्म (Hypothyroidism) रोग उत्पन्न हो जाता है। भोजन में आयोडीन की कमी के कारण घेघा या ग्वाइटर (Goitre) नामक रोग हो जाता है। इसके कारण थाइराइड ग्रन्थि के आकार में बहुत वृद्धि हो जाती है। थायरॉक्सिन के आधिक्य से टॉक्सिक ग्वाइटर (Toxic goitre) नामक रोग होता है। थाइरॉक्सिन की अधिकता के कारण ऑख फूलकर नेत्रकोटर से बाहर निकल जाती है। इस रोग को एक्सोप्थेलमिक ग्वाइटर (Exophthalmic goitre) कहते हैं।

  1. परावटु ग्रन्थि (Parathyroid glands): ये मटर की आकृति की पालियुक्त (Lobed) ग्रन्थियाँ हैं। ये थाइरॉइड ग्रन्थि के पीछे स्थित रहती है और संयोजी ऊतक के एक संपुट द्वारा उससे अलग रहती है।

परावटु ग्रन्थि द्वारा स्रावित हार्मोन व उनके कार्य: इस ग्रन्थि द्वारा दो हार्मोनों का स्राव होता है। ये दोनों रक्त में कैल्सियम और फॉस्फोरस की मात्रा का नियंत्रण करते हैं। ये हार्मोन हैं-

(i) पैराथाइरॉइड हार्मोन (Parathyroid hormone)- यह हार्मोन उस समय मुक्त होता है, जब रक्त में कैल्सियम की कमी हो जाती है। यह हार्मोन कैल्सियम के अवशोषण तथा वृक्क में इसके पुनरावशोषण (Reabsorption) को बढ़ाता है। यह अस्थियों के अनावश्यक भाग को गलाकर रक्त में कैल्सियम और फॉस्फोरस मुक्त करता है। यह हड्डियों की वृद्धि एवं दाँतों के निर्माण का नियंत्रण करता है।

(ii) कैल्सिटोनिन हार्मोन (Calcitonin hormone): जब रक्त में कैल्सियम की मात्रा अधिक हो जाती है, तब यह हार्मोन मुक्त होता है। यह हार्मोन पैराथाइरॉइड हार्मोन के विपरीत काम करता है। यह हड्डियों के विघटन को कम करता है तथा मूत्र में कैल्सियम का उत्सर्जन बढ़ाता है।

  1. अधिवृक्क ग्रन्थि (Adrenal gland): अधिवृक्क ग्रन्थि को उपरिवृक्कीय ग्रन्थि या सुप्रारीनल ग्लैंड के नाम से भी जाना जाता है। यह ग्रन्थि प्रत्येक वृक्क के ऊपरी सिरे पर अंदर की ओर स्थित रहती है। वस्तुतः अधिवृक्क ग्रन्थि के दो भाग होते हैं-

(A) बाहरी वल्कुट या कॉर्टेक्स (Cortex)

(B) अंदरुनी मध्यांश या मेड्युला (Medulla)

ये दोनों भाग कार्यात्मक रूप से तथा उत्पत्ति में भी एक-दूसरे से भिन्न होते हैं।

(A) एड्रीनल कॉर्टेक्स द्वारा स्रावित हार्मोन एवं उनके कार्य: इसके द्वारा स्रावित हार्मोनों को निम्नलिखित तीन समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

(i) ग्लूकोकॉर्टिक्वायर्डस (Glucocorticoids): भोजन उपापचय में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ये कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं वसा के उपापचय का नियंत्रण करते हैं। शरीर में जल एवं इलेक्ट्रोलाइट्स के नियंत्रण में भी ये सहायक होते हैं। ये अमाशयिक स्राव को प्रेरित करते हैं। ये हार्मोन प्रदाह-विरोधी (Anti inflammatory) होते हैं, जिसके लिए ये श्वेत रुधिराणुओं पर नियंत्रण कर उत्तेजक पदार्थों के प्रति सुरक्षा प्रतिक्रियाओं को रोकते हैं। ये शरीर में लाल रुधिराणुओं की संख्या को बढ़ाते हैं तथा श्वेत रुधिराणुओं को नियंत्रित करते हैं।

(ii) मिनरलोकॉर्टिक्वायर्डस (Mineralocorticoids): इनका मुख्य कार्य वृक्क नलिकाओं द्वारा लवण के पुनः अवशोषण एवं शरीर में अन्य लवणों की मात्रा का नियंत्रण करना है। ये शरीर में जल संतुलन को भी नियंत्रित करते हैं। इसके प्रभाव से मूत्र द्वारा पोटैशियम और फॉस्फेट का अधिक मात्रा में उत्सर्जन और सोडियम क्लोराइड एवं जल का कम मात्रा में उत्सर्जन होता है।

(iii) लिंग हार्मोन (sex hormones): ये हार्मोन पेशियों तथा हड्डियों के परिवर्धन, बाह्यलिंगों, बालों के आने का प्रतिमान एवं यौन आचरण का नियंत्रण करते हैं। ये हार्मोन मुख्यतः नर हार्मोन एन्ड्रोजन्स (Androgens) तथा मादा हार्मोन एस्ट्रोजन्स (Estrogens) होते हैं। नर हार्मोन में मुख्य डीहाइड्रोएपीएन्ड्रोस्टीरोन (Dehydroepiandrosterone) होता है। स्त्रियों में इस हार्मोन की अधिकता से चेहरे पर बाल बढ़ने लगते हैं। इस प्रक्रिया को एड्रीनल विरिलिज्म (Adrenal virilism) कहते हैं।

(B) एड्रीनल मेडुला द्वारा स्रावित हार्मोन व उनके कार्य: एड्रीनल मेडुला से निम्नलिखित दो हार्मोनों का स्त्राव होता है-

(i) एड्रीनेलीन (Adrenalin): इस हार्मोन को एड्रीनिन (Adrenin) एवं एपिनेफ्रीन (Epineprin) भी कहते हैं। यह हार्मोन मेडुला से स्रावित हार्मोन का अधिकांश भाग होता है। यह हार्मोन क्रोध, डर, मानसिक तनाव एवं व्यस्तता की अवस्था में अत्यधिक स्रावित होने लगता है, जिससे इन संकटकालीन परिस्थितियों में उचित कदम उठाने का निर्णय लिया जा सकता है। यह हृदय स्पंदन की दर को बढ़ाता है। यह हार्मोन रोंगटे खड़े होने के लिए प्रेरित करता है। यह आँख की पुतलियों को फैलाता है। अधिवृक्क ग्रन्थि से निकलने वाले इस हार्मोन को लड़ो और उड़ी हार्मोन कहा जाता है।

(ii) नॉर एड्रीनेलीन या नॉर एपिनेफ्रिन (Nor adrenalin or Norepinephrine): ये सामान रूप से हृदय पेशियों की उत्तेजनशीलता एवं संकुचनशीलता को तेज करते हैं। परिणामस्वरूप रक्त चाप (Blood pressure) बढ़ जाता है। यह हृदय स्पंदन के एकाएक रुक जाने पर उसे पुनः चालू करने में सहायक होता है।

एड्रीनल के अल्पस्रवण से होने वाले रोग:

(i) एडीसन रोग (Addison’s disease): इस रोग में रुधिर दाब कम हो जाता है तथा सोडियम एवं जल का उत्सर्जन बढ़ जाता है जिससे निर्जलीकरण (Dehydration) हो जाता है। चेहरे, गर्दन एवं त्वचा पर जगह-जगह चकते पड़ जाते हैं। (ii) कॉन्स रोग (Conn’s disease): यह रोग सोडियम एवं पोटैशियम की कमी से हो जाता है। इस रोग में पेशियों में अकड़न आ जाती है एवं रोगी की मृत्यु भी हो जाती है।

एड्रीनल के अतिस्रवण से होने वाले रोग:

(i) कुशिंग रोग (Cushing disease): इस रोग में शरीर में जल एवं सोडियम का जमाव अधिक हो जाता है। पेशीय शिथिलन होने लगता है। प्रोटीन केटाबलिज्म (Protein catabolism) बढ़ जाता है तथा हड्डियाँ अनियमित हो जाती हैं। (ii) एड्रीनल विरिलिज्म (Adrenal virilism): इस रोग में स्त्रियों में पुरुषों के लक्षण बनने लगते हैं। इसमें स्त्रियों के चेहरे पर दाढ़ी व मूंछों का आना, आवाज मोटी हो जाना, बाँझपन उत्पन्न हो जाना इत्यादि होते हैं।

  1. थाइमस ग्रन्थि (Thymus gland): यह ग्रंथि वक्ष में हृदय से आगे स्थित होती है। यह ग्रंथि वृद्धावस्था में लुप्त हो जाती है। यह गुलाबी, चपटी एवं द्विपालित (Bilobed) ग्रन्थि है।

थाइमस ग्रन्थि से स्रावित हार्मोन व उनके कार्य: थाइमस ग्रन्थि से निम्नलिखित हार्मोनों का स्राव होता है– (i) थाइमोसीन (Thymosin), (ii) थाइमीन-I (Thymin-I), (iii) थाइमीन-II (Thymin-II)

ये हार्मोन शरीर में लिम्फोसाइट कोशिकाएँ बनाने में सहायक होती हैं। ये हार्मोन लिम्फोसाइट को जीवाणुओं एवं एन्टीजन्स (Antigens) को नष्ट करने के लिए प्रेरित करती हैं। ये शरीर में एन्टीबॉडी बनाकर शरीर की सुरक्षा तंत्र स्थापित करने में सहायक होती हैं।

  1. अग्न्याशय की लैंगरहैंस की दीपिकाएँ: अग्न्याशय एक हल्के पीले रंग की विसरित ग्रंथि है। यह आमाशय एवं डयूओडिनम (Duodenum) के बीच स्थित होती है। इससे अग्न्याशय रस स्रावित होता है। इस रस में कई पाचक एन्जाइम होते हैं। इस प्रकार यह एक बहिःस्रावी ग्रन्थि है, परन्तु अग्न्याशय में विशिष्ट प्रकार की कोशिकाओं के समूह पाये जाते हैं, जिन्हें लैंगरहैंस की दीपिकाएँ (Islets of Langerhans) कहते हैं। ये अन्त:स्वावी ग्रन्थि का काम करती है।

लैंगरहैंस की दीपिका द्वारा स्रावित हार्मोन एवं उनके कार्य: लैंगरहैंस की द्वीपिका में निम्नलिखित तीन प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती हैं-

(i) α – कोशिकाएँ (α-cells)

(ii) β- कोशिकाएँ (B-cells)

(iii) δ- कोशिकाएँ (8—cells) γ- कोशिकाएँ (Gamma cells)

इससे निम्नलिखित हार्मोनों का स्राव होता है-

(i) ग्लूकागॉन (Glucagon): यह हार्मोन अल्फा कोशिकाओं (α-cells) द्वारा स्रावित होता है। यह यकृत (Liver) में ग्लूकोनियोजेनेसिस (Gluconeogenesis) को प्रेरित करता है, जिससे ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है। यह ऊतकों में ग्लूकोज के उत्पादन में भी सहायक होता है।

(ii) इन्सुलिन (Insulin): यह हार्मोन β-कोशिकाओं (β-Cells) द्वारा स्रावित होता है। यह कार्बोहाइड्रेट उपापचय के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह पेशियों एवं यकृत में ग्लूकोस से ग्लाइकोजेन के परिवर्तन की दर को काफी बढ़ा देता है। यह शर्करा एवं वसा के निर्माण में भी सहायक है और प्रोटीन संश्लेषण को प्रेरित करता है। यह पेशियों में ग्लूकोस उपापचय को तीव्र करता है। अगर अग्न्याशय इन्सुलिन हार्मोन का उत्पादन बन्द कर दे तो मूत्र एवं रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जाएगी। यह ग्लूकोस के ऑक्सीकरण से शरीर कोशिकाओं में ऊर्जा विमुक्ति को प्रभावित करता है।

इन्सुलिन के अल्पस्रवण से मधुमेह या डाइबिटीज मेलिटस (Diabetes mellitus) नामक रोग होता है। इस रोग में रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने लगती है। ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने से ग्लूकोज मूत्र में उत्सर्जित होने लगता है। मूत्र में जल की मात्रा बढ़ जाती है जिससे मूत्र पतला एवं मात्रा बढ़ जाती है। इस प्रकार बहुमूत्रता की अवस्था उत्पन्न हो जाती है। इन्सुलिन के अतिस्रवण से हाइपोग्लाइसीमिया (Hypoglycemia) नामक रोग हो जाता है। इस रोग में रक्त में रुधिर की मात्रा कम हो जाती है जिससे तंत्रिका तथा रेटिना की कोशिकाएँ ऊर्जा की कम मात्रा की अवस्था में आ जाती है। इससे जनन क्षमता एवं दृष्टि ज्ञान कम होने लगता है तथा रोगी को थकावट अधिक महसूस होती है।

(iii) सोमेटोस्टेटीन (somatostatin)– यह हार्मोन डेल्टा कोशिकाओं या गामा कोशिकाओं से स्रावित होता है। यह हार्मोन पॉलीपेप्टाइड होता है जो पचे हुए भोजन के स्वांगीकरण (Assimilation) की अवधि बढाता है।

  1. जनन ग्रन्थियाँ (Gonads): जनन ग्रन्थियाँ जनन कोशिकाओं के निर्माण के अलावा अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के रूप में भी कार्य करती है।

(A) अण्डाशय (Ovary): यह मादा के उदर गुहा में स्थित होता है। इसके द्वारा निम्नलिखित हार्मोनों का स्राव होता है-

(i) एस्ट्रोजन (Estrogen): यह एस्टेरॉयड (Steroid) होता है, जो ग्रेफियन फॉलिकिल (Graffian follicle) द्वारा स्रावित होता है। यह हार्मोन यौवनावस्था में यौन लक्षणों जैसे- गर्भाशय (Uterus), योनि (vagina), भगशिश्न (Clitoris) व स्तनों के विकास को प्रेरित करता है। यह हार्मोन गर्भाशयी एण्डोमीट्रियम (Uterine endometrium) की वृद्धि को प्रेरित करता है तथा अंडवाहिनी (Oviduct) के परिवर्द्धन को पूर्ण करता है। इस हार्मोन की कमी के कारण जनन क्षमता क्षीण हो जाती है, रजनोवृति (Menopause) का आभास होने लगता है तथा स्तन ढलने लगता है।

(ii) प्रोजेस्टेरॉन (Progesteron): इस हार्मोन का स्राव प्रति पिण्ड या कॉर्पसल्यूटियम (Corpus luteum) की कोशिकाओं द्वारा होता है। यह एस्ट्रोजेन से सहयोग कर स्तन के विकास एवं दुग्ध ग्रन्थियों को सक्रिय करता है। इसके अतिरिक्त यह गर्भावस्था एवं प्रसव में होने वाले परिवर्तनों से भी सम्बद्ध होता है। अत: यह हार्मोन गर्भधारण के निर्धारण वाला हार्मोन कहलाता है।

(iii) रिलैक्सिन (Relaxin): यह हार्मोन भी कॉर्पस ल्यूटियम (Corpus luteum) द्वारा स्रावित होता है। गर्भावस्था में यह अण्डाशय, गर्भाशय एवं अपरा (Placenta) में उपस्थित रहता है। यह हार्मोन प्यूबिक सिम्फाइसिस (Pubic symphysis) को मुलायम करता है तथा गर्भाशय को सिकुड़ने से रोकता है। यह गर्भाशय ग्रीवा (Uterine cervix) को चौड़ा करता है। इससे बच्चे के जन्म में सहायता मिलती है।

(B) वृषण (Testes): यह नर जनन अंग है। यह शरीर के बाहर स्क्रोटल कोष (scrotal sae) में स्थित होते हैं। वृषण के अंदर स्थित अन्तराली कोशिकाओं (Interstitial cells) या लीडिंग कोशिकाओं (Leyding cells) से नर हार्मोन स्रावित होते हैं, जिन्हें एण्ड्रोजेन (Androgen) कहते हैं। सबसे प्रमुख एन्ड्रोजेन हार्मोन को टेस्टोस्टेरॉन (Testosteron) कहते हैं। यह हार्मोन पुरुषोचित लैंगिक लक्षणों के परिवर्द्धन को एवं यौन-आचार को प्रेरित करता है।

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