राजस्थान की जलवायु Climate of Rajasthan
उत्तर-पश्चिमी भारत में राजस्थान की जलवायु आमतौर पर शुष्क या अर्ध-शुष्क होती है और गर्मियों और सर्दियों दोनों में चरम तापमान के साथ वर्ष भर में काफी गर्म तापमान होता है।
जलवायु – किसी भू भाग पर लंबी अवधि के दौरान विभिन्न समयों में विभिन्न वायुमंडलीय दशाओं की औसत अवस्था को उस भू भाग की जलवायु कहते हैं
जलवायु के निर्धारक घटक
- तापक्रम वायुदाब आर्द्रता वर्षा वायु वेग
- राज्य का अधिकांश भाग कर्क रेखा के उत्तर में उपोषण कटिबंध में स्थित है केवल डूंगरपुर बांसवाड़ा जिले का कुछ भाग ही उष्णकटिबंध में आता है
राजस्थान की लगभग 90% से अधिक वर्षा ग्रीष्मकालीन दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी हवाओं से होती हैं। शीतकाल में न्यूनतम वर्षा वह भी पश्चिमी विक्षोभों से प्राप्त होती हैं। राजस्थान में वर्षाकाल अल्पावधि का होता है राजस्थान में मानसून 15 जून से 15 जुलाई के बीच पहुंचता है तथा सितंबर से पुनः लौटना प्रारंभ हो जाता है। अतः इन कुछ महीनों में ही वर्षा प्राप्त कर ली जाती हैं इसके साथ ही कभी-कभी दिसंबर-जनवरी में पश्चिमी विक्षोभ से ‘मावट’ के रूप में वर्षा होती हैं।
जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक
1. अक्षांशीय स्थिति- भारत उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है, अतः राजस्थान की स्थिति भी उत्तरी गोलार्द्ध में है। राजस्थान उपोष्ण कटिबन्ध में आता है। लेकिन राजस्थान की जलवायु उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी जलवायु है।
2. समुद्र से दूरी- समुद्र (कच्छ की खाड़ी) से – 225 किमी. तथा अरब सागर से राजस्थान – 400 किमी. दूर है। अतः समुद्री प्रभाव नहीं होते हैं।
3. भूमध्य रेखा से दूरी-111.4 × 23.3 = 2595.62 किमी.।
4. स्थान की समुद्र तल या धरातल से ऊंचाई- प्रति 165 मीटर की ऊंचाई पर 1°C तापमान कम हो जाता है। अतः माऊण्ट आबू ठण्डा रहता है। राजस्थान के सामान्य तापमान व माऊण्ट आबू के ताप में लगभग 11°C का अन्तर है।
5. भौगोलिक स्थिति (प्रकृति)-
(i) अरावली पर्वतमाला की स्थिति – दक्षिण पश्चिम – उत्तर-पूर्व।
(ii) राजस्थान विश्व के सबसे युवा मरूस्थल (थार) का भाग है। अतः यहां गर्म जलवायु रहती है।
(iii) विभिन्न ऋतुओं में तापमान की विषमताओं के कारण राजस्थान की जलवायु को महाद्वीपीय जलवायु कहा जाता है।
राजस्थान के जलवायु प्रदेश (भारतीय मौसम विभाग द्वारा प्रस्तुत)-
- राजस्थान के जलवायु प्रदेश के निर्धारण में वर्षा एवं तापक्रम मुख्य मापदण्ड है, तापक्रम के अपेक्षा वर्षा को अधिक महत्व दिया जाता है और इस आधार पर पाँच भागों में जलवायु प्रदेश को बांटा गया है।
1. शुष्क जलवायु प्रदेश – यहां वनस्पति बहुत कम है। केवल कंटिली झाड़ियां है। वर्षा का औसत – 20 सेमी से कम। प. राजस्थान वाष्पीकरण दर अधिक तापमान -: ग्रीष्म – 34°-40° शीत – 12°-16°
2. अर्द्ध शुष्क जलवायु प्रदेश – यह स्टैपी प्रकार की वनस्पति, घास एवं कंटिली झाड़ियां पायी जाती है। वर्षा का औसत – 20 से 40 सेमी। शेखावटी क्षेत्र -: ग्रीष्म – 32°-36° शीत – 10°-17°
3. उप आर्द्र जलवायु प्रदेश – यह पर्वतीय वनस्पति पायी जाती है। वर्षा का औसत- 40 से 60 सेमी। जयपुर, अजमेर, पाली, नागौर आदि -: ग्रीष्म – 28°-34° शीत – 12°-18°
4. आर्द्र जलवायु प्रदेश – पतझड़ वाले वृक्ष पाये जाते हैं। वर्षा का औसत – 60 से 90 सेमी। भरतपुर, धौलपुर, कोटा, बूंदी, स. माधोपुर -: ग्रीष्म – 32°-35° शीत – 14°-17°
5. अति आर्द्र प्रदेश – यहां मानसूनी सवाना वनस्पति पायी जाती है। वर्षा का औसत – 90 सेमी से अधिक। द. पू. राजस्थान में । आम, शीशम, सागवान, बांस, शहतूत आदि वनस्पतियां व वृक्ष इस प्रदेश में है।
राजस्थान में ऋतुएँ
- भूगोल में ऋतुएँ : (1) ग्रीष्म (2) वर्षा (3) शरद् (4) शीत।
- संस्कृत के अनुसार : (1) वसन्त – फाल्गुन-चैत्र (2) ग्रीष्म – वैशाख-ज्येष्ठ (3) वर्षा – आषाढ़-सावन (4) शरद् – भाद्रपद-आश्विन (5) हेमन्त – कार्तिक-मार्गशीर्ष (6) शिशिर – पोष-माघ।
(1) ग्रीष्म ऋतु :
- गर्म – शुष्क हवाएँ – लू। (प. से पूर्व की और चलती है।)
- ये हवाएं यदि चक्रवात के रूप में चलती है तो इन्हें भभूल्या कहते हैं। भभूल्या की उत्पति संवहनी धाराओं के कारण होती है।
- सबसे गर्म व शुष्क स्थान – फलौदी (जोधपुर)।
- राजस्थान का सबसे गर्म जिला – चूरू।
- अब तक का सबसे गर्म वर्ष – 2010 रहा।
- दैनिक तापान्तर व वार्षिक तापान्तर : दैनिक तापान्तर सर्वाधिक जैसलमेर में है।
- दैनिक व वार्षिक तापान्तर में न्यूनतम अन्तर डूंगरपुर में मिलता है।
- सर्वाधिक वार्षिक तापान्तर चूरू में मिलता है।
- सबसे गर्म महीना जून है।
- जून को सूर्य बाँसवाड़ा जिले में लम्बवत् चमकता है।
- ग्रीष्म ऋतु मार्च से लेकर जून तक होती है।
- थार मरूस्थल भारत में अत्यधिक गर्म प्रदेशों में से एक है क्योंकि यहां दैनिक परिसर अधिक है।
- राजस्थान का पश्चिमी भाग में निम्न वायुदाब का केन्द्र उत्पन्न हो जाता है।
- ग्रीष्मऋतु में राजस्थान में सूर्य की तीव्र किरणों, अत्यधिक तापमान, शुष्क व गर्म हवाओं, वाष्पीकरण की अधिकता के कारण आर्द्रता में कमी हो जाती है।
(2) वर्षा ऋतु :
- राजस्थान वर्षा ऋतु में प्राप्त वर्षा दक्षिण पश्चिम मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा से होती है।
- मानसून अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ – मौसम / ऋतु / हवाओं की दिशा में परिवर्तन होता है।
- प्रथम सदी में एक अरबी नाविक ‘हिप्पौलस‘ ने मानसून की खोज की (अवधारणा दी) थी।
– भारतीय मानसून की उत्पत्ति- इसकी उत्पत्ति हिन्दमहासागर में मेडागास्कर द्वीप के पास से मानी जाती है क्योंकि मई के माह में उच्च ताप व निम्न वायुदाब होता है इस कारण हवाएं मेडागास्कर के पास से दक्षिण-पश्चिम दिशा बहती हुई भारत की ओर आती है तथा सबसे पहले केरल तट पर वर्षा करती है। यहां मानसून दो भागों में बंट जाता है-
(A) अरब सागर का मानसून- यह भारत के पश्चिमी तट पर वर्षा करता हुआ गुजरात काठिया वाड़ में वर्षा कर राजस्थान में प्रवेश करता है।
- राजस्थान में प्रवेश करता है परन्तु राजस्थान में वर्षा नहीं करता क्योंकि अरावली पर्वतमाला की स्थिति इसके समानान्तर है। इसके पश्चात् हिमालय की तराई क्षेत्र पंजाब व हिमाचल में वर्षा करता है।
(B) बंगाल की खाड़ी का मानसून- यह तमिलनाडु में वर्षा कर बंगाल की खाड़ी की आर्द्रता को ग्रहण कर उत्तर-पूर्व के राज्यों में घनघोर वर्षा करता है।
- माँसिनराम (मेघालय) विश्व का सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान यहीं है।
- दूसरा सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान चेरापूंजी का नाम अब सोहरा कर दिया गया है।
- इसके पश्चात् पश्चिम बंगाल, बिहार व उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश में वर्षा करता हुआ, झालावाड़ जिले में राजस्थान में प्रवेश करता है।
- सर्वाधिक वर्षा वाला जिला झालावाड़ (40 दिन)।
- दूसरा सर्वाधिक वर्षा वाला जिला बांसवाड़ा।
- न्यूनतम वर्षा वाला जिला जैसलमेर (5 दिन)।
- न्यूनतम वर्षा वाला स्थान – फलौदी।
- सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान – माऊण्ट आबू (153 सेमी. वार्षिक)।
- राजस्थान में वर्षा जून से सितम्बर की अवधि में होती है।
- 50 सेमी. की सम वर्षा रेखा राज्य को दो विभागों में बांटती है। इस रेखा के दक्षिण और पूर्व में वर्षा अधिक होती है।
- 25 सेमी. की वर्षा रेखा द्वारा पश्चिमी राजस्थान को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है – (A) शुष्क प्रदेश (B) अर्द्ध शुष्क प्रदेश।
- राजस्थान में वर्षा का वार्षिक औसत 57.51 सेमी. है।
- वर्षा की मात्रा द.-पू. से उ.-प. की और कम होती जाती है।
(3) शरद् ऋतु :
- मानसून लौटने (प्रत्यावर्तन) का काल। इस ऋतु में सबसे धीमी हवाएँ चलती हैं। नवम्बर के माह में।
- मानसून प्रत्यावर्तन का काल -: अक्टुम्बर-दिसम्बर के प्रारम्भ तक।
(4) शीत ऋतु :
- राजस्थान का सबसे ठण्डा माह जनवरी है। सबसे ठण्डा जिला – चूरू। सबसे ठण्डा स्थान – माऊण्ट आबू। दूसरा सबसे ठण्डा स्थान – डबोक (उदयपुर)।
- राजस्थान में शीत ऋतु में उत्तर-पूर्वी मानसून से या भूमध्यसागरीय मानसून या पश्चिमी विक्षोभों से होने वाली वर्षा को मावठ कहते हैं।
- राज्य में भारतीय मौसम विभाग की वैधशाला जयपुर में है।
- राजस्थान में सम्भावित वाष्पन-वाष्पोत्सर्जन वार्षिक दर सबसे अधिक जैसलमेर जिले में है।
- वर्षा की मात्रा राज्य में द-पू. से उत्तर – पश्चिम की और कम होती जाती है।
- मानसून प्रत्यावर्तन का काल -: अक्टुम्बर – दिसम्बर के प्रारम्भ तक।
हवाएँ :
- राजस्थान में जून के महीने में हवाएँ सबसे तेज व नवम्बर के महीने में सबसे हल्की चलती हैं।
- राज्य में वायु की अधिकतम गति लगभग 140 किमी./घण्टा है।
- ग्रीष्म ऋतु में गर्म, तेज हवाएँ और आंधियाँ पश्चिमी राजस्थान की विशेषता है।
आंधियाँ :
- राजस्थान में सर्वाधिक आँधियाँ मई-जून के महीने में आती है।
- राज्य में सर्वाधिक आंधियों वाला जिला – श्रीगंगानगर (27 दिन)।
- राज्य में दूसरा सर्वाधिक आंधियों वाला जिला – हनुमानगढ़ (23 दिन)।
- राज्य में न्यूनतम आंधियों वाला जिला – झालावाड़ (3 दिन)।
- राज्य में दूसरा न्यूनतम आंधियों वाला जिला – कोटा (5 दिन)।
- राज्य के पश्चिमी शुष्क क्षेत्रों की अपेक्षा पूर्वी भागों में वज्र तूफान अधिक आते हैं।
- मावट/महावट – सर्दियों में भूमध्यसागरीय चक्रवातों (पश्चिमी विक्षोभों) के कारण उत्तरी व पश्चिमी राजस्थान में होने वाली वर्षा। यह वर्षा रबी की फसल के लिए लाभकारी, अतः राजस्थान में इसे गोल्डन ड्रोप्स कहते हैं।
- पश्चिमी राजस्थान में दैनिक तापांतर सर्वाधिक रहता है।
- राजस्थान में छोटे क्षेत्र में उत्पन्न वायु भंवर (चक्रवात) को स्थानीय क्षेत्र में भभूल्या कहते हैं।
- पुरवईयाँ – बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसूनी हवाओं को स्थानीय भाषा में ‘पुरवईयाँ’ (पुरवाई) कहते हैं।
जलवायु सम्बन्धी महत्वपूर्ण तथ्य –
- राज्य में सर्वाधिक वर्षा वाले महीने – जुलाई, अगस्त
- राज्य में सर्वाधिक वर्षा वाला जिला – झालावाड़ (100 सेमी.)
- राज्य में सबसे कम वर्षा वाला जिला – जैसलमेर (10 सेमी.)
- राज्य में सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान – माउण्ट आबू (सिरोही-125 से 150 सेमी)
- राज्य में सबसे कम वर्षा वाला स्थान – समगांव (जैसलमेर 5 सेमी)
- 50 सेमी. वर्षा रेखा राजस्थान को दो भागों में बांटती है।
- राजस्थान में 50 सेमी. वर्षा रेखा उत्तर – पश्चिम में कम जबकि दक्षिण – पूर्व में अधिक होती है।
तथ्य – उत्तर-पश्चिम से दक्षिण पूर्व की ओर चलने पर वर्षा का औसत बढ़ता हुआ दिखायी देता है। जबकि इसके विपरीत वर्षा का औसत घटता हुआ दिखायी देता है।
- राज्य में सर्वाधिक आर्द्रता वाला महीना – अगस्त
- राज्य में सबसे कम आर्द्रता वाला महीना – अप्रेल
- राज्य में सर्वाधिक आर्द्रता वाला जिला – झालावाड़
- राज्य में सबसे कम आर्द्रता वाला जिला – बीकानेर
- राज्य में सर्वाधिक आर्द्रता वाला स्थान – माउण्ट आबु (सिरोही)
- राज्य में सबसे कम आर्द्रता वाला स्थान – फलौदी (जोधपुर)
कोपेन के अनुसार राजस्थान के जलवायु प्रदेश
जलवायु वर्गीकरण के आधार -: वर्षा, वनस्पति, तापमान, वाष्पीकरण।
(i) AW या ऊष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु प्रदेश – इस जलवायु प्रदेश के अंतर्गत डूंगरपुर जिले का दक्षिणी भाग एवं बांसवाड़ा,चित्तौड़गढ़ व झालावाड़ आते हैं। यहाँ का तापक्रम 18° से. से ऊपर रहता है। इस प्रदेश में ग्रीष्म ऋतु में भीषण गर्मी (30°- 40°) तथा यहाँ की वनस्पति सवाना तुल्य एवं मानसूनी पतझड़ वाली आदि प्रमुख विशेषताएँ हैं। औसत वर्षा – 80 cm से अधिक
(ii) Bshw जलवायु प्रदेश -इस प्रदेश के अन्तर्गत, जालौर, बाड़मेर, सिरोही, पाली, नागौर, जोधपुर, चूरू, सीकर, झुंझुनूं आदि आते हैं। इस प्रदेश में जाड़े की ऋतु शुष्क, वर्षा कम (20-40 cm) व स्टैपी प्रकार की वनस्पति पायी जाती है। कांटेदार झाड़ियाँ एवं घास यहाँ की मुख्य विशेषता है। ग्रीष्म ऋतु → 32°-35° से सर्दी → 5°-10°C
(iii) BWhw जलवायु प्रदेश – यहाँ वर्षा बहुत कम होने के कारण वाष्पीकरण अधिक होता है। इस प्रदेश में मरुस्थलीय जलवायु पायी जाती है। इस जलवायु प्रदेश के अन्तर्गत-जैसलमेर, पश्चिमी बीकानेर, उ. पश्चिमी जोधपुर, हनुमानगढ़ तथा गंगानगर आदि आते हैं। वर्षा 10-20 cm ग्रीष्म 35°C मे अधिक शीत 12-18°C वर्षा -: 60-80 cm वाष्पीकरण की दर तीव्र
(iv) Cwg जलवायु प्रदेश – अरावली के दक्षिण-पूर्वी भाग इस जलवायु प्रदेश में आते हैं। यहाँ वर्षा केवल वर्षा ऋतु में होती है। शीतऋतु में कुछ मात्रा में वर्षा होती है। ग्रीष्म -: 32°-38°C शीत-: 14°-16°C
थार्नवेट के विश्व जलवायु प्रदेशों पर आधारित : राजस्थान जलवायु प्रदेश आधार -: वनस्पति, वाष्पीकरण मात्रा, वर्षा व तापमान।
- इसके वर्गीकरण का आधार भी कोपेन की भाँति वनस्पति है। यह कोपेन के वर्गीकरण से अधिक मान्य है।
(i) CA’ w (उपआर्द्र जलवायु प्रदेश) – इस प्रकार का प्रदेश अधिकांशतया दक्षिणी-पूर्वी उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, कोटा, बारां, झालावाड़ आदि जिलों में पाया जाता है। यहाँ वर्षा ग्रीष्म ऋतु में होती है। शीत ऋतु प्रायः सूखी रहती है। यहां सवाना तथा मानसूनी वनस्पति पायी जाती है।
(ii) DA’ w (उष्ण आर्द्र जलवायु प्रदेश) – इस प्रकार की जलवायु में ग्रीष्मकालीन तापमान ऊँचे रहते हैं। वर्षा कम होती है तथा अर्द्ध मरूस्थलीय वनस्पति पायी जाती है। राजस्थान का अधिकांश भाग अर्थात् बाड़मेर व जोधपुर का अधिकांश भाग, बीकानेर, चूरू एवं झुन्झुनूं का दक्षिणी भाग, सिरोही, जालोर, पाली, अजमेर, उत्तरी चित्तौड़, बूंदी, सवाई माधोपुर, टोंक, भीलवाड़ा, भरतपुर, जयपुर, अलवर आदि जिले इस जलवायु प्रदेश के अन्तर्गत आते हैं।
(iii) DB’ w (अर्द्ध शुष्क जलवायु प्रदेश) – इस प्रदेश के भागों में शीत ऋतु छोटी और शुष्क परन्तु ग्रीष्म ऋतु लम्बी और वर्षा वाली होती है। यहाँ कंटीली झाड़ियाँ और अर्द्ध-मरूस्थलीय वनस्पति पायी जाती है। राजस्थान के ऊत्तरी भाग जैसे गंगानगर, हनुमानगढ़ जिले व चूरू एवं बीकानेर के अधिकांश भाग आदि जिले इस प्रदेश में आते हैं।
(iv) EA’ d (उष्ण शुष्क कटिबन्धीय मरूस्थलीय जलवायु – यह अत्यन्त गर्म और शुष्क जलवायु प्रदेश है। यहां प्रत्येक मौसम में वर्षा की कमी अनुभव की जाती है। वनस्पति केवल मरूस्थलीय ही उगती है। राजस्थान की मरूस्थली में स्थित बाड़मेर, जैसलमेर, पश्चिमी जोधपुर, दक्षिणी-पश्चिमी बीकानेर आदि जिले इस प्रदेश के अन्तर्गत आते हैं।
ट्रिवार्था के विश्व जलवायु प्रदेशों पर आधारित राजस्थान जलवायु प्रदेश
- प्रो. ट्रिवार्थी ने डॉ. कोपेन के वर्गीकरण में संशोधन कर अपना वर्गीकरण प्रस्तुत किया है। यह वर्गीकरण बड़ा सरल और बोधगम्य है। अतः उसी आधार के अपनाते हुए लेखक ने राजस्थान में निम्न जलवायु प्रदेश सीमांकित किये हैं।
(i) Aw जलवायु प्रदेश – इस प्रकार के प्रदेश में उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु मिलती है जिसमें तापमान 21° से. तक रहता है और वर्षा 100 सेमी. तक होती है। बांसवाड़ा, उदयपुर, डूंगरपुर, चित्तौड़गढ़, बारां, झालावाड़ इसके अन्तर्गत आते हैं।
(ii) Bsh जलवायु प्रदेश – उष्ण और अर्द्ध उष्ण कटिबन्धीय स्टेपी जलवायु इस प्रदेश की विशेषता है। इस प्रकार की जलवायु पश्चिमी उदयपुर, हनुमानगढ़, राजसमन्द, सिरोही, जालौर, दक्षिणी-पूर्वी बाड़मेर, जोधपुर, पाली, अजमेर, नागौर, चूरू, झुन्झुनूं, सीकर, गंगानगर, बीकानेर आदि जिलों में मिलती है।
(iii) Bwh जलवायु प्रदेश – इस प्रदेश के अन्तर्गत उष्ण और अर्द्धउष्ण मरूस्थल जलवायु पाई जाती है। जैसलमेर, उत्तरी-पश्चिमी बीकानेर आदि जिले तथा उनके भू-भाग इसके अन्तर्गत आते हैं।
(iv) Caw जलवायु प्रदेश – यह अर्द्धउष्ण आर्द्र प्रदेश है जिसमें वर्षा कम होती है शीत ऋतु में कुछ वर्षा चक्रवातों द्वारा होती है। इसमें कोटा, बूंदी, पूर्वी टोंक, सवाईमाधोपुर, करौली, भरतपुर, धौलपुर, दक्षिणी अलवर आदि जिले आते हैं।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य :
राजस्थान के जलवायु प्रदेश ( Rajasthan Climate Region )
जलवायु प्रदेश का अर्थ (Meaning of Climatic Region) पृथ्वी तल के वे विस्तृत भू भाग जहां जलवायु तत्वों में समांगता पाई जाती है, उसे जलवायु प्रदेश कहते हैं।
जलवायु प्रदेशों के नाम
- शुष्क जलवायु प्रदेश ( Dry climate region )
- अर्द्ध शुष्क जलवायु प्रदेश ( Semi-arid climate region )
- उप आर्द्र जलवायु प्रदेश (Sub-humid climate region )
- आर्द्र जलवायु प्रदेश ( Humid climate region )
- अति आर्द्र जलवायु प्रदेश ( Very humid climate region )
Dry climate region ( शुष्क जलवायु प्रदेश ): –
- इसमें जैसलमेर (प्रतिनिधि नगर) दक्षिणी गंगानगर , पश्चिमी बीकानेर , हनुमानगढ़ , जोधपुर (फलौदी) आदि स्थान आते है ।
- इस क्षेत्र की औसत वर्षा 10-20 सेमी. एवं तापमान शीतऋतु में 10-17 डिग्री से. एवं ग्रीष्मऋतु में 35 डिग्री से. तक होता है ।
- इस क्षेत्र में छोटी पत्तियों वाली कंटीली वनस्पति पायी जाती है जिसे मरुदभिद / जिरोफाइट कहते है ।
Semi-arid climate region ( अर्द्ध शुष्क जलवायु प्रदेश ): –
- इस क्षेत्र में गंगानगर , बीकानेर (प्रतिनिधि नगर) , बाड़मेर , चूरू , सीकर , झुंझुनू , जोधपुर , पाली , जालौर , नागौर , अजमेर , टोंक , दौसा व जयपुर आदि शामिल हैं ।
- इस प्रदेश में औसत वर्षा 20-40 सेमी. एवं तापमान ग्रीष्मकाल में 32 डिग्री से. एवं शीतऋतु में 10-16 डिग्री से. तक रहता है ।
- इस क्षेत्र में स्टेपी प्रकार की वनस्पति व घास के मैदान पाये जाते है ।
- यहां प्राप्त होने वाले वृक्षों में आक , धोक , बबूल , खींप , जाल , रोहिड़ा , खेजड़ी आदि एवं सेवण व लावण नामक घास पायी जाती है
- राजस्थान की सर्वाधिक खारे पानी की झींले इसी क्षेत्र में मिलती है ।
Sub-humid climate region ( उप आर्द्र जलवायु प्रदेश ) : –
- इसके अंतर्गत जयपुर (प्रतिनिधि) , अजमेर , पाली , जालौर , सिरोही , भीलवाड़ा , टोंक , अलवर आदि जिले आते है ।
- इस क्षेत्र में औसत वर्षा 40-60 सेमी. एवं तापमान शीतकाल में 12-18 डिग्री से. व ग्रीष्मकाल में 28-32 डिग्री से. तक होता है ।
- इस क्षेत्र में पर्वतीय वनस्पति एवं पतझड़ वनस्पति पायी जाती है । जिसमें आम , नीम , आंवला , खेर , बहड़ आदि वृक्ष प्रमुख है ।
Humid climate region ( आर्द्र जलवायु प्रदेश ): –
- इसके अंतर्गत धौलपुर , सवाई माधोपुर (प्रतिनिधि नगर) , करौली , कोटा , बूंदी , टोंक , चितौड़गढ़ , राजसमन्द व उदयपुर आदि जिले आते है ।
- इस क्षेत्र में औसत वर्षा 40-80 सेमी. एवं तापमान ग्रीष्मकाल में 32-34 डिग्री से. व शीतकाल में 14-17 डिग्री से. तक होता है ।
- इस क्षेत्र में सघन पतझड़ वन पाये जाते है , जिनमें आम , बेर , इमली , नीम , बबूल , शहतूत , शीशम , गूगल , जामुन आदि वृक्ष पाये जाते है
Very humid climate region ( अति आर्द्र जलवायु प्रदेश ): –
इस प्रदेश में झालावाड़ (प्रतिनिधि नगर) , कोटा , उदयपुर का दक्षिणी भाग , आबू पर्वत (सिरोही) , डूंगरपुर एवं बांसवाडा आदि क्षेत्र शामिल है ।
इस क्षेत्र में औसत वर्षा 80-150 सेमी. व तापमान ग्रीष्मकाल में 30-38 डिग्री से. व शीतकाल में 14-18 डिग्री से. तक रहता है ।
इस प्रदेश की मुख्य वनस्पति सवाना तुल्य प्रकार की है , जिसमे जामुन , आम , शहतूत , सागवान , शीशम , बांस , महुआ आदि वृक्ष मुख्य रूप से उगाये जाते है ।
- राजस्थान विषम जलवायु वाला प्रदेश है , परन्तु उदयपुर राज्य का एक मात्र ऐसा जिला है जहाँ की जलवायु सम जलवायु है ।
- दूसरा सबसे ठंडा स्थान डबोक (उदयपुर) है ।
- राज्य में भारतीय मौसम विभाग की वेधशाला जयपुर में स्थित है ।
राजस्थान में जून माह में न्यूनतम वायुदाब जैसलमेर जिले में संभावित है राजस्थान को दो भागों में बांटने वाली सम वर्षा रेखा 50 सेंटीमीटर की है राजस्थान में माउंट पश्चिमी विक्षोभ संबंधित है जब पुष्कर की पहाड़ियों में भारी वर्षा होती है तो बाढ़ बालोतरा जाती है
राज्य की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक ( Factors Affecting Climate )
राज्य की जलवायु को मुख्यत 7 कारक प्रभावित करते है –
1. अक्षाशीय एवं देशांतरीय विस्तार : –
➡ राजस्थान अक्षांशीय एवं देशांतरीय विस्तार के आधार पर शीतोष्ण जलवायु वाला क्षेत्र है ।
➡ परंतु राज्य के दक्षिण अर्थात डूंगरपुर एवं बांसवाडा से कर्क रेखा गुजरती है जिससे यह क्षेत्र उष्ण कटिबंधीय जलवायु वाला क्षेत्र है ।
➡ इस प्रकार राजस्थान का दक्षिणी भाग ” उष्ण कटिबंधीय ” जलवायु वाला क्षेत्र एवं बाकी क्षेत्र ” उपोष्ण कटिबंध ” वाला क्षेत्र है ।
राजस्थान को वर्षा की दृष्टि से 3 प्रदेशों में बांटा गया है :-
- सामान्य वर्षा के प्रदेश (दक्षिण व दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान),
- मध्यम वर्षा के प्रदेश (पूर्वी राजस्थान)
- न्यून वर्षा के प्रदेश (पश्चिमी राजस्थान) में विभाजित किया जाता है।
खण्ड वृष्टि-: राजस्थान में वर्षा की असमानता राज्य के पूर्व या पश्चिम तक ही सीमित नहीं है वरन् गांव-गांव या क्षेत्र विशेष तक भी व्याप्त रहती हैं। कभी-कभी एक गांव में या गाँवों के समूह में या क्षेत्र विशेष में वर्षा एकाएक बहुत अधिक हो जाती हैं। जबकि फसल व खेत या क्षेत्र या गांव पूर्णतः तरह सूखे रह जाते हैं। इसे “खंड वृष्टि ” कहते हैं।
राजस्थान के जलवायु प्रदेश ( Rajasthan Climate Region )
जलवायु प्रदेश का अर्थ (Meaning of Climatic Region) पृथ्वी तल के वे विस्तृत भू भाग जहां जलवायु तत्वों में समांगता पाई जाती है, उसे जलवायु प्रदेश कहते हैं।
जलवायु प्रदेशों के नाम
- शुष्क जलवायु प्रदेश ( Dry climate region )
- अर्द्ध शुष्क जलवायु प्रदेश ( Semi-arid climate region )
- उप आर्द्र जलवायु प्रदेश (Sub-humid climate region )
- आर्द्र जलवायु प्रदेश ( Humid climate region )
- अति आर्द्र जलवायु प्रदेश ( Very humid climate region )
Dry climate region ( शुष्क जलवायु प्रदेश ): –
- इसमें जैसलमेर (प्रतिनिधि नगर) दक्षिणी गंगानगर , पश्चिमी बीकानेर , हनुमानगढ़ , जोधपुर (फलौदी) आदि स्थान आते है ।
- इस क्षेत्र की औसत वर्षा 10-20 सेमी. एवं तापमान शीतऋतु में 10-17 डिग्री से. एवं ग्रीष्मऋतु में 35 डिग्री से. तक होता है ।
- इस क्षेत्र में छोटी पत्तियों वाली कंटीली वनस्पति पायी जाती है जिसे मरुदभिद / जिरोफाइट कहते है ।
Semi-arid climate region ( अर्द्ध शुष्क जलवायु प्रदेश ): –
- इस क्षेत्र में गंगानगर , बीकानेर (प्रतिनिधि नगर) , बाड़मेर , चूरू , सीकर , झुंझुनू , जोधपुर , पाली , जालौर , नागौर , अजमेर , टोंक , दौसा व जयपुर आदि शामिल हैं ।
- इस प्रदेश में औसत वर्षा 20-40 सेमी. एवं तापमान ग्रीष्मकाल में 32 डिग्री से. एवं शीतऋतु में 10-16 डिग्री से. तक रहता है ।
- इस क्षेत्र में स्टेपी प्रकार की वनस्पति व घास के मैदान पाये जाते है ।
- यहां प्राप्त होने वाले वृक्षों में आक , धोक , बबूल , खींप , जाल , रोहिड़ा , खेजड़ी आदि एवं सेवण व लावण नामक घास पायी जाती है
- राजस्थान की सर्वाधिक खारे पानी की झींले इसी क्षेत्र में मिलती है ।
Sub-humid climate region ( उप आर्द्र जलवायु प्रदेश ) : –
- इसके अंतर्गत जयपुर (प्रतिनिधि) , अजमेर , पाली , जालौर , सिरोही , भीलवाड़ा , टोंक , अलवर आदि जिले आते है ।
- इस क्षेत्र में औसत वर्षा 40-60 सेमी. एवं तापमान शीतकाल में 12-18 डिग्री से. व ग्रीष्मकाल में 28-32 डिग्री से. तक होता है ।
- इस क्षेत्र में पर्वतीय वनस्पति एवं पतझड़ वनस्पति पायी जाती है । जिसमें आम , नीम , आंवला , खेर , बहड़ आदि वृक्ष प्रमुख है ।
Humid climate region ( आर्द्र जलवायु प्रदेश ): –
- इसके अंतर्गत धौलपुर , सवाई माधोपुर (प्रतिनिधि नगर) , करौली , कोटा , बूंदी , टोंक , चितौड़गढ़ , राजसमन्द व उदयपुर आदि जिले आते है ।
- इस क्षेत्र में औसत वर्षा 40-80 सेमी. एवं तापमान ग्रीष्मकाल में 32-34 डिग्री से. व शीतकाल में 14-17 डिग्री से. तक होता है ।
- इस क्षेत्र में सघन पतझड़ वन पाये जाते है , जिनमें आम , बेर , इमली , नीम , बबूल , शहतूत , शीशम , गूगल , जामुन आदि वृक्ष पाये जाते है
Very humid climate region ( अति आर्द्र जलवायु प्रदेश ): –
इस प्रदेश में झालावाड़ (प्रतिनिधि नगर) , कोटा , उदयपुर का दक्षिणी भाग , आबू पर्वत (सिरोही) , डूंगरपुर एवं बांसवाडा आदि क्षेत्र शामिल है ।
इस क्षेत्र में औसत वर्षा 80-150 सेमी. व तापमान ग्रीष्मकाल में 30-38 डिग्री से. व शीतकाल में 14-18 डिग्री से. तक रहता है ।
इस प्रदेश की मुख्य वनस्पति सवाना तुल्य प्रकार की है , जिसमे जामुन , आम , शहतूत , सागवान , शीशम , बांस , महुआ आदि वृक्ष मुख्य रूप से उगाये जाते है ।
- राजस्थान विषम जलवायु वाला प्रदेश है , परन्तु उदयपुर राज्य का एक मात्र ऐसा जिला है जहाँ की जलवायु सम जलवायु है ।
- दूसरा सबसे ठंडा स्थान डबोक (उदयपुर) है ।
- राज्य में भारतीय मौसम विभाग की वेधशाला जयपुर में स्थित है ।
राजस्थान में जून माह में न्यूनतम वायुदाब जैसलमेर जिले में संभावित है राजस्थान को दो भागों में बांटने वाली सम वर्षा रेखा 50 सेंटीमीटर की है राजस्थान में माउंट पश्चिमी विक्षोभ संबंधित है जब पुष्कर की पहाड़ियों में भारी वर्षा होती है तो बाढ़ बालोतरा जाती है
राज्य की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक ( Factors Affecting Climate )
राज्य की जलवायु को मुख्यत 7 कारक प्रभावित करते है –
1. अक्षाशीय एवं देशांतरीय विस्तार : –
➡ राजस्थान अक्षांशीय एवं देशांतरीय विस्तार के आधार पर शीतोष्ण जलवायु वाला क्षेत्र है ।
➡ परंतु राज्य के दक्षिण अर्थात डूंगरपुर एवं बांसवाडा से कर्क रेखा गुजरती है जिससे यह क्षेत्र उष्ण कटिबंधीय जलवायु वाला क्षेत्र है ।
➡ इस प्रकार राजस्थान का दक्षिणी भाग ” उष्ण कटिबंधीय ” जलवायु वाला क्षेत्र एवं बाकी क्षेत्र ” उपोष्ण कटिबंध ” वाला क्षेत्र है ।
2. समुन्द्र तल से दूरी : –
➡ भारतीय उपमहाद्वीप के आंतरिक भाग में स्थित होने के कारण राज्य की जलवायु पर सामुंद्रिक स्थिति का प्रभाव नही पड़ता है इसी कारण राजस्थान कु जलवायु उपोष्ण जलवायु है ।
3. अरावली पर्वतमाला की स्थिति : –
➡ राज्य में अरावली पर्वत माला का विस्तार दक्षिण – पश्चिम से उत्तर – पूर्व की ओर है जो अरब सागरीय मानसून के समान्तर है । इस कारण राज्य में अधिक वर्षा नही हो पाती है ।
➡ राज्य में वर्षा दक्षिण – पश्चिम मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा से होती है । जिससे राज्य में अरावली पर्वत माला के पूर्व में वर्षा अच्छी होती है जबकि पश्चिमी भाग में न्यूनतम वर्षा होती है।
4. धरातलीय स्थिति : –
➡ राजस्थान की धरातलीय ऊंचाई 370 मी. से कम है एवं अरावली पर्वतमाला और दक्षिण – पूर्व क्षेत्र की धरातलीय ऊंचाई 370 मी. से अधिक है ।
5. वनस्पति तत्व : –
➡ राज्य के पश्चिमी क्षेत्र में न्यूनतम वन पाये जाते हैं इसी कारण यहां की जलवायु शुष्क है , इसके विपरीत अरावली पर्वतीय क्षेत्र एवं दक्षिणी – पूर्वी क्षेत्र में अधिक वन की सघनता वायुमंडलीय दशाओं को प्रभावित करती है ।
6. मृदा की संरचना : –
➡ राज्य के पश्चिमी भाग में रेतीली एवं मोटे कणों वाली मिट्टी पायी जाती है जो दिन में बहुत जल्दी गर्म एवं रात में बहुत जल्दी ठंडी हो जाती है इसलिए जैसलमेर में सर्वाधिक दैनिक तापान्तर पाया जाता है ।
➡ इसके विपरीत पूर्वी एवं दक्षिणी – पूर्वी राज्य में चिकनी दोमट व काली मिट्टी पायी जाती है जिसके कण बहुत हल्के होते है यह मिट्टी बहुत धीरे गर्म व बहुत धीरे ठंडी होती है इसलिए इस क्षेत्र की जलवायु आर्द्र बनी रहती है ।
7. समुन्द्र तल से ऊंचाई : –
➡ जो भाग समुंद्रतल से जितना ऊंचा होगा वहां की जलवायु ठंडी होगी ।
डॉ. ब्लादिमीर कोपेन की जलवायु वर्गीकरण वनस्पति के आधार पर ( Climate classification )
बलादिमीर कोपेन ने राजस्थान की जलवायु को चार जलवायु प्रदेशों में बांटा
1 AW
2 BSHW
3 Bwhw
4 Cwg
1 Aw- या (उष्णकटिबंधीय आद्र जलवायु प्रदेश) – राज्य के दक्षिणी भाग डूंगरपुर और बांसवाडा जिलों के अंतर्गत आते हैं
2-BSHW या (अर्ध शुष्क प्रदेश)- राजस्थान के सर्वाधिक भाग में पाई जाती है राज्य के चूरु नागौर सीकर झुंझुनूं जोधपुर बाड़मेर पाली सिरोही इसके अंतर्गत आते हैं
3-Bwhw ( जलवायु प्रदेश या शुष्क उष्ण मरुस्थलीय प्रदेश)- इसके अंतर्गत राज्य के श्री गंगानगर हनुमानगढ़ बीकानेर जैसलमेर जोधपुर जिले का उत्तरी पश्चिम भाग्य के अंतर्गत आता है
4-Cwg प्रदेश (उप आद्र प्रदेश) – अरावली के दक्षिणी पूर्वी जिले इसके अंतर्गत आते हैं
राजस्थान में प्रवेश करने वाली हवाओं के नाम
- भभूल्या- इसका शाब्दिक अर्थ है वायु का भंवर मरुस्थल में निम्न वायुदाब की केंद्र के कारण स्थानीय स्तर पर बनने वाले भवंरो को स्थानीय भाषा में भभूल्या कहा जाता है
- पश्चिमी विक्षोभ- शीतकाल में पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर चलने वाली भूमध्यसागरीय पवनों को पश्चिमी विक्षोभ कहा जाता है इन्हीं के कारण राजस्थान में मावठ होती है इन्हीं पवनों क्षोभ मे मंडल में 6 से 12 किलोमीटर की ऊंचाई पर जेट स्ट्रीम कहा जाता है इन पवनों का नाम जेट स्ट्रीम दूसरे विश्वयुद्ध के समय युद्ध विमान बी 32 जेट विमान के आधार पर रखा गया था
- वज्र- इसका शाब्दिक अर्थ होता है छोटा तूफान जो पश्चिमी मरुस्थल में निम्न वायुदाब के कारण छोटे चक्रवात चलते हैं उन्हें स्थानीय भाषा में वज्र कहा जाता है
- वज्रात- पश्चिमी राजस्थान में छोटे-छोटे चक्रवातों से मानसुन से पहले होने वाली वर्षा को स्थानीय भाषा में वज्रात कहा जाता है
- पुरवइया – इसका शाब्दिक अर्थ होता है पूर्व दिशा की और चलनेवाली पवने राजस्थान में ग्रीष्मकाल के समय पूर्व दिशा से आने वाली बंगाल की खाड़ी के मानसून को पुरवइया पवन कहा जाता है
- सूर्या- गर्मियों के समय आने वाली उत्तर-पश्चिमी गर्म हवाओं को स्थानीय भाषा में सूर्या कहा जाता है
- समदरी- राजस्थान में ग्रीष्मकाल के समय समुंदर से आने वाली दक्षिणी-पश्चिमी हवाओं को स्थानीय भाषा में समदडरी कहा जाता है
- सिली- इसका शाब्दिक अर्थ होता है ठंडी पवने, शीतकाल के समय राजस्थान में पौष महीने में चलने वाली ठंडी पवनों को सिली कहा जाता है
- सिली मारबो- पोष माह मे चलने वाली ठंडी पवन से राजस्थान में रबी की फसल पर पाला पड़ता है जिससे पत्तियां मुरझाने लगती हैं इसी कारण इन्हे सीली मारबो कहते है
- तुवा- गर्म पवने, पश्चिमी राजस्थान मे चलने वाली पवनो को तुवा या तवा कहते है
- झाला- प. राजस्थान मे पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के कारण जो चमकती हुइ मृग मरीचिका दिखाई देती है उसे स्थानिय भाषा मे झाला कहते है
- आथूणी- शाम के समय चलने वाली पवने इन्हे स्थानिय भाषा मे आथणी कहते है
- अर्डाव- अर्थ चिल्लाना, पश्चिमी राजस्थान मे तेज के साथ आव करती हुई स्थानिय पवनो को अर्डाव कहते है
राज्य में उत्तर दिशा से प्रवेश करने वाली हवा को धरोड़ , धराऊ , उत्तरार्द्ध के नाम से जाना जाता है ।राज्य में दक्षिण दिशा से प्रवेश करने वाली हवा को लंकाऊ के नाम से जाना जाता है ।राज्य में पूर्व दिशा से प्रवेश करने वाली हवा को पुरवईया , पुरवाई , पुरवा , आगुणी के नाम से जाना जाता है । राज्य में पश्चिमी दिशा से प्रवेश करने वाली हवा को पच्छउ , पिछवाई , पिच्छवा , आथूणी के नाम से जाना जाता है ।
राज्य में उत्तर – पूर्व दिशा से प्रवेश करने वाली हवा को संजेरी के नाम से जाना जाता है । राज्य में उत्तर – पश्चिमी दिशा से प्रवेश करने वाली हवा को सुरया के नाम से जाना जाता है ।राज्य में दक्षिण – पूर्व दिशा से प्रवेश करने वाली हवा को चील के नाम से जाना जाता है ।राज्य में दक्षिण – पश्चिम दिशा से प्रवेश करने वाली हवा को समंदरी , समुंदरी के नाम से जाना जाता है ।
जून-जुलाई के महीनों में दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्रों में आने वाला तूफान वज्र तूफान कहलाता है ।सर्वाधिक वज्र तूफान झालावाड़ व जयपुर जिलों में आते है ।सबसे कम वज्र तूफान बाड़मेर व बीकानेर जिलों में आते है ।