भारत छोड़ो आंदोलन 1942 | Quit India Movement 1942 in Hindi Notes

भारत छोड़ो आंदोलन 1942 (Quit India Movement 1942 in Hindi)

भारत में अंग्रेजों ने लगभग दो दशकों तक शासन किया था, और उस दौरान देश में कई ऐसे क्रांतिकारी थे, जिन्होंने भारत को अंग्रेजों की गुलामी एवं अत्याचारों से छुटकारा दिलवाने में अपनी जान तक की बाजी लगा दी. आखिरकार अंग्रेजों को भारत को आजादी देने के लिए मजबूर होना ही पड़ा. आजादी के कुछ साल पहले महात्मा गाँधी जी के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ कई आंदोलन किये गये थे. उन्हीं में से एक हैं ‘भारत छोड़ो आंदोलन’, जोकि उस दौरान बहुत अधिक जोर पकड़ रहा था. इस आंदोलन की शुरुआत क्यों की गई एवं देश पर इसका क्या प्रभाव पड़ा, इन सभी के विषय में जानकारी यहाँ मौजूद है.

महत्वपूर्ण जानकारी (Important Information)

क्र. म.जानकारी बिंदु (Information Points)महत्वपूर्ण जानकारी (Important Information)
1.आंदोलन का नाम (Movement’s Name)भारत छोड़ो आंदोलन
2.आंदोलन की घोषणा (Movement Launched on)8 अगस्त 1942
3.आंदोलन की शुरुआत (Movement Started at)बॉम्बे प्रेसीडेंसी, (वर्तमान में मुंबई, महाराष्ट्र)
4.आंदोलन का लांच (Movement Launched By)भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा
5.आंदोलन की प्रकृति (Nature of Movement)बड़े पैमाने पर विरोध
6.आंदोलन का उद्देश्य (Objective of the Movement)भारत से ब्रिटिशों को बाहर निकालना

भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत (Starting of Quit India Movement )

भारत छोड़ो आंदोलन को आल इंडिया कांग्रेस कमिटी के बॉम्बे सेशन में शुरू किया गया और इसकी शुरुआत करने का फैसला भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा किया गया था. जिसका मुख्य उद्देश्य किसी भी कीमत पर ब्रिटिशों को भारत से बाहर निकालना था. इस आंदोलन का नेतृत्व भारत के राष्ट्रपिता द्वारा किया गया था. जिन्होंने इस आंदोलन के दौरान बॉम्बे में गोवलिया टैंक मैदान पर लोगों को संबोधित करते हुए ‘करो या मरो’ का नारा दिया था. हालाँकि इस आंदोलन में कई बड़े उद्योगपतियों और अन्य समूहों ने विभिन्न कारणों से आंदोलन का समर्थन नहीं किया था, और इस आंदोलन का तत्काल स्वतंत्रता प्राप्त करने में भी कोई बड़ा प्रभाव नहीं था. लेकिन इस आंदोलन का वर्ष 1947 में भारत की आजादी के लिए महत्वपूर्ण योगदान रहा था.

द्वितीय विश्व युद्ध और भारत छोड़ो आंदोलन (World War 2 and Quit India Movement)

सन 1939 में जब द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ तब ब्रिटेन जर्मनी के खिलाफ लड़ रहा था. इस युद्ध में जर्मन सैनिकों के खिलाफ लड़ने के लिए ब्रिटिशों ने भारतीय सैनिकों को भी भेज दिया था. क्योकि उस समय भारत ब्रिटिश एम्पायर का प्रमुख हिस्सा था. इसलिए भारत को इसमें शामिल होना पड़ा था. किन्तु जर्मनी में हो रही कठोर गतिविधियां भारतीय कांग्रेस कार्य समिति को पसंद नहीं आई. और कांग्रेस कार्य समिति ने उस समय एक प्रस्ताव जारी किया कि भारत इस युद्ध में शामिल नहीं होगा. उसके कुछ दिन बाद वायसराय ने एक बयान जारी किया कि युद्ध में ब्रिटेन का उद्देश्य दुनिया में शांति लाना है. उन्होंने यह वादा किया कि एक बार युद्ध समाप्त हो जाये उसके बाद सरकार भारत के पक्ष में सन 1935 के अधिनियम में संशोधन करेगी.

इसके साथ ही इंग्लैंड में महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन हो रहे थे. चर्चिल प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता में आये और वे एक रुढ़िवादी व्यक्ति थे, इसलिए उन्होंने भारतीयों एवं कांग्रेस द्वारा की गई मांगों को स्वीकृति नहीं दी, जिससे देश भर में बड़े पैमाने पर असंतोष फ़ैल गया. किन्तु उन्होंने कुछ मांगों को मान लिया था क्योकि वे चाहते थे कि उस समय जब युद्ध तेजी से आगे बढ़ रहा था तो भारतीय उनका समर्थन करें, जिससे ब्रिटेन की स्थिति ख़राब होने से बच जाएँ. किन्तु भारतीयों ने युद्ध में शामिल होने से इनकार कर दिया. फिर सन 1940 को भारत के वायसराय ने एक और बयान जारी किया कि भारत द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन का पूरा सहयोग करें, इसके बदले में उन्होंने भारतीय सदस्यों को वायसराय की एग्जीक्यूटिव काउंसिल में जोड़ने का वादा किया. और साथ ही यह भी कहा कि वे उनके स्वयं के संविधान लागू करने के भारतीयों के अधिकारों पर विचार करेंगे. किन्तु इस प्रस्ताव को कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग सभी ने मानने से इंकार कर दिया. दरअसल गाँधी जी के साथ ही कांग्रेस के सभी लोग ये नहीं चाहते थे कि युद्ध में भारतीय सैनिक शामिल हों. इसलिए कोई भी ब्रिटिशों का समर्थन नहीं कर रहा था.

क्रिप्स मिशन (Cripps Mission)

मार्च 1942 में, अंग्रेजों ने भारत में एक प्रतिनिधिमंडल भेजा, जिसका नेतृत्व हाउस ऑफ कॉमन्स के तत्कालीन नेता सर स्टाफर्ड क्रिप्स ने किया था. इसलिए इसे क्रिप्स मिशन भी कहा जाता है. इन प्रतिनिधियों का भारत का दौरा करने का एकमात्र उद्देश्य भारतीय राजनीतिक दलों के साथ बातचीत कर ब्रिटेन का समर्थन करने के लिए उन्हें मनाना था. इसके बदले में वे भारतीयों की कुछ मांगों को पूरा करना चाहते थे. लेकिन भारतीयों की प्रमुख मांग स्व सरकार बनाने का उनका अधिकार था जिसे उन्होंने पूरा नहीं किया. इससे भारतीयों ने इस मिशन को पूरा नहीं होने दिया, और यह फेल हो गया.

क्रिप्स मिशन का फेल होना भारत छोड़ो आंदोलन के प्रमुख कारकों में से एक था. यह आंदोलन अंग्रेजों से तत्काल स्वतंत्रता प्राप्त करने की उम्मीद के साथ शुरू किया गया था. दरअसल उस समय जापान ब्रिटेन को युद्ध में परास्त करते – करते भारत की सीमा के करीब पहुंच रहा था. उस समय गाँधी जी का यह मानना था कि यदि ब्रिटेन भारत को आजाद कर दें, तो जापान भारत पर आक्रमण नहीं करेगा. इसलिए वे उस समय अंग्रेजों से पूरी तरह से आजादी चाहते थे. और उन्होंने इसके लिए यह आंदोलन शुरू किया था.

विरोध (Opposition)

गाँधी जी के इस भारत छोड़ो आंदोलन को कई भारतीयों के विरोध का सामना करना पड़ा था, विभिन्न कारणों से बहुत से भारतीयों ने इस आंदोलन का समर्थन नहीं करने का विकल्प चुना. बहुत से लोगों का मानना था कि इस समय भारत का आजाद होना सही नहीं है. इसमें गाँधी के प्रमुख वफादार चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने भी उनका विरोध किया और उन्होंने कांग्रेस छोड़ने का फैसला किया. हालाँकि मौलाना आजाद और जवाहरलाल नेहरु जैसे नेताओं ने गाँधी जी के साथ वफादार रहना सही समझा और उन्होंने उनका समर्थन किया. इसके अलावा निम्न राजनीतिक दलों ने इस आंदोलन का समर्थन नहीं किया.

  • मुस्लिन लीग :- मुस्लिम लीग के प्रमुख नेताओं ने इसे प्री – मैच्योर बताते हुए इस आंदोलन का विरोध किया. उनका कहना था कि कांग्रेस को पहले पाकिस्तान के निर्माण से सम्बंधित ‘मुस्लिम लीग’ के साथ चर्चा करनी चाहिए. और फिर भारत को मुक्त करने की मांग करने के लिए अन्य सभी समूहों पर विचार करना चाहिये. क्योकि उन्हें यह डर था कि अगर मुसलमानों के लिए एक अलग राज्य बनाये बिना भारत को आजाद कर दिया गया तो हिन्दुओं द्वारा मुसलमानों को प्रताड़ित किया जायेगा. और इसलिए उन्होंने इसका समर्थन नहीं किया.
  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) :- मुस्लिम लीग के साथ ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ ने भी आंदोलन का समर्थन नहीं किया. आरएसएस का नेतृत्व एमएस गोलवलकर कर रहे थे जिन्होंने आंदोलन में अपना समर्थन इसलिए नहीं दिया, क्योकि वे सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ नहीं जाना चाहते थे.
  • हिन्दू महासभा :- हिन्दू महासभा इस आंदोलन का समर्थन नहीं कर रहे थे. हिन्दू महासभा का कहना था कि यह आंदोलन आंतरिक अव्यवस्था लायेगा. इसके साथ ही वे भारत का विभाजन भी नहीं चाहते थे.
  • भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी :- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी युद्ध के दौरान ब्रिटिशों का साथ देते हुए हिटलर के नेतृत्व वाली नाज़ी – जर्मनी के खिलाफ अपनी लड़ाई में सोवियत संघ का समर्थन कर रही थी. वो इसलिए क्योंकि उस समय भारत में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में पाबन्दी लगा दी गई थी और वे युद्ध में ब्रिटिशों का समर्थन कर इस पाबन्दी को निलंबित करना चाहती थी.
  • भारतीय बड़े व्यापारी :- इसके साथ ही कुछ भारतीय बड़े व्यापारियों ने भी आंदोलन का साथ नहीं दिया. व्यवसायियों ने युद्ध का समर्थन इसलिए किया क्योकि वे इस बड़े भारी युद्ध के खर्च के माध्यम से बड़े लाभ का आनन्द ले रहे थे.
  • छात्र :- उस समय के कई छात्र सुभाष चंद्र बोस के विचारों से प्रभावित थे, इसलिए उन्होंने गाँधी का साथ देना सही नहीं समझा और वे इस आंदोलन से पीछे हट गये.

स्थानीय लोगों द्वारा हिंसा (Voilence By Local Peoples)

इस अन्दोलन के शुरू होने के दुसरे ही दिन गाँधी जी, अब्दुल कलाम आजाद, जवाहरलाल नेहरु, सरदार वल्लभभाई पटैल सहित बहुत से नेताओं और कुछ समर्थकों को अंग्रेजों द्वारा जेल भेज दिया गया था. यहाँ तक कि उन्होंने उस दौरान कांग्रेस पार्टी को बैन तक कर दिया था. उन पर अत्याचार किये गये, इससे भारत के स्थानीय लोगों में बहुत अधिक आक्रोश बढ़ गया. देश के लगभग सभी आम लोग एक साथ इकठ्ठा होकर सामने आये और कुछ ने अहिंसा पूर्वक तो कुछ ने हिंसा से इसका विरोध करना शुरू कर दिया.

प्रसिद्ध ब्रिटिश लेखक जॉन एफ रिडिक ने कहा कि भारत छोड़ो आंदोलन, 70 पुलिस स्टेशनों सहित 155 सरकारी भवनों के विनाश में जिम्मेदार था. उन्होंने यह भी कहा कि इस आंदोलन के कारण कई रेलवे स्टेशनों और डाकघरों में हमले किये गये, जिससे कम से कम 250 रेलवे स्टेशन और 550 डाकघर भी बुरी तरह प्रभावित हुए. पूरे भारत में प्रदर्शनकारियों द्वारा लगभग 2,500 टेलीग्राफ तारों को भी नष्ट कर दिया गया. बिहार, उत्तरप्रदेश जैसे क्षेत्रों में लोगों ने जेलों को तोडना शुरू कर दिया और कई कांग्रेस नेताओं को रिहा कर दिया. कुछ स्थानीय शासकों ने तो अपने स्वयं के शासन की घोषणा कर दी. पश्चिम बंगाल में किसान भी हिंसक गतिविधियों में शामिल हो गये, क्योकि वे इस बात से नाराज थे कि ब्रिटिश सरकार ने नये टैक्स लागू किये थे, और उन्हें चावल निर्यात करने के लिए भी मजबूर किया था.

आंदोलन का समापन (Closing of the Movement)

सन 1944 तक कांग्रेस कार्य समिति के बहुत से नेताओं और समर्थकों को जेल में ही रखा गया था. जिससे बहुत से लोगों की जेल में ही मृत्यु हो गई थी. और लोगों द्वारा की गई हिंसक प्रकृति के चलते अंग्रेजों ने भारतीयों के साथ कठोरता दिखाई. उन्होंने लगभग 1,00,000 से भी अधिक लोगों को गिरफ्तार कर लिया, कई नागरिकों और प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने गोली मार दी. इससे यह आंदोलन बुरी तरह से विफल हो गया और बहुत से राष्ट्रवादी लोग उदास भी हुए. इस तरह कई राजनीतिक दलों का समर्थन न मिलने की वजह से यह आंदोलन यही समाप्त हो गया और गाँधी के साथ ही कांग्रेस पार्टी के नेताओं को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा.

आंदोलन का प्रभाव (Impact of the Quit India Movement)

हालाँकि गाँधी जी के इस आंदोलन का उस समय तत्काल स्वतंत्रता प्राप्त करने के मामले में कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ा, लेकिन इसने भारत की सन 1947 की स्वतंत्रता में निम्न प्रभाव पड़ा-

  • इससे कांग्रेस पार्टी के साथ ही साथ लोगों में एकजुट होने की भावना पैदा हो गई.
  • इससे अंग्रेजों के दिमाग में एक चीज आ चुकी थी कि पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए अब भारतीय उनकी अपेक्षा से अधिक विद्रोह करने के लिए तैयार हैं.
  • अंग्रेजों को यह भी समझ आ गया था कि भारत को अब ग्लोबल नेताओं का भी समर्थन प्राप्त हैं क्योंकि अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रेंक्लिन डी रूज़वेल्ट ने ब्रिटिश प्रशासन से भारतीय की कुछ मांगों को पूरा करने के लिए आग्रह किया था.
  • स्वतंत्रता पर आंदोलन का एक बड़ा प्रभाव यह भी पड़ा कि विभिन्न हिंसक गतिविधियों के चलते कई संपत्तियों का नुकसान हो गया था. अंग्रेजों को लगा कि यदि भारत पर लंबे समय तक शासन करना है तो भारत का पुनर्निर्माण करना होगा.
  • दूसरी ओर द्वितीय विश्व युद्ध से ब्रिटिशों का काफी मौद्रिक नुकसान भी हुआ था. जिससे उनके पास इतना धन नहीं था कि वे भारत का पुनर्निर्माण कर सकें. और अंग्रेजों को यह एहसास हो गया कि अब भारत में शासन करना संभव नहीं है. सन 1945 में जब युद्ध समाप्त हो गया तब उनके दिमाग में यह बात थी कि शांति और शालीनता के साथ भारत को छोड़ देना ही उनके लिए सही होगा. हालाँकि अंग्रेजों को यह लग रहा था कि भारत को इस हाल में छोड़ देंगे तो भारत पर कोई और देश राज कर सकता है. किन्तु ऐसा नहीं हुआ.

इससे अंग्रेजों के इरादों में पानी फिर गया और अंग्रेज सन 1947 को भारत छोड़ कर वापस ब्रिटेन चले गये. इस तरह से भारत छोड़ो आंदोलन ने भारत को आजादी दिलाने में अपना अहम योगदान दिया.

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