राजस्थानी साहित्य / Literature of Rajasthan
सूर्यमल्ल मिश्रण: बूंदी जिले के हरणा गांव में चारण कुल में जन्मे सूर्यमल मिश्रण बूंदी के शासक महाराव रामसिंह हाड़ा के दरबारी कवि थे। इनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना वंश भास्कर है। जिसमें बूंदी के चौहान शासकों का इतिहास है। इनके द्वारा रचित अन्य ग्रंथ वीर सतसई, बलवंत विलास व छंद मयूख है। वीर रस के इस कवि को रसावतार कहा जाता है। सूर्यमल मिश्रण को आधुनिक राजस्थानी काव्य के नवजागरण का पुरोधा कवि माना जाता है। ये अपने अपूर्व ग्रंथ वीर सतसई के प्रथम दोहे में ही समय पल्टी सीस की उद्घोषणा के साथ ही अंग्रेजी दासता के विरूद्ध बिगुल बजाते हुए प्रतीत होते है।
एल.पी. तेस्सितोरी: इटली के प्रसिद्ध भाषा शास्त्री डाॅ. एल.पी. तेस्तितोरी 19141 में राजस्थान (बीकानेर) आए। बीकानेर महाराजा गंगासिंह ने इन्हे राजस्थान के चारण साहित्य के सर्वेक्षण एवं संग्रह का कार्य सौंपा था जिसे पूर्ण कर इन्होने अपनी रिपोर्ट दी तथा राजस्थानी चारण साहित्यः एक ऐतिहासिक सर्वे तथा पश्चिमी राजस्थानी व्याकरण नामक पुस्तकें लिखी। बीकानेर इनकी कर्मस्थली रहा है। बीकानेर का प्रसिद्ध म्यूजियम इन्ही की देन है।
कर्नल जेम्स टॉड: इग्लैण्ड निवासी जेम्स टाॅड वर्ष 1917-18 में पश्चिमी राजपूत राज्यों का पाॅलिटिकल एजेंट बनकर उदयपुर आए। इन्होने 5 वर्ष तक राजस्थान की इतिहास विषयक सामग्री एकत्र की एवं इग्लैंड जाकर वर्ष 1829 में “एनल्स एंड एंटीक्विटीज आफ राजस्थान” नामक ग्रंथ लिखा जिसका दूसरा नाम सेंट्रल एंड वेस्टर्न राजपूत स्टेट्स आॅफ इंडिया है। इस रचना में सर्वप्रथम राजस्थान शब्द का प्रयोग हुआ। कर्नल जेम्स टॉड को राजस्थान के इतिहास लेखन का पितामह माना जाता है।
बांकीदास ने अपनी कविताओं में अंग्रेजी की अधीनता स्वीकार करने वाले राजपूत शासकों को फटकारा था।
कन्हैयालाल सेठिया: चुरू जिले के सुजानगढ कस्बे में जन्मे सेठिया आधुनिक काल के प्रसिद्ध हिंदी व राजस्थानी लेखक है। इनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध काव्य रचना ‘पाथल व पीथल’ है। (पाथल राणाप्रताप को व पीथल पृथ्वीराज राठौड़ को कहा गया है) सेठिया की अन्य प्रसिद्ध रचनाएं – लीलटांस, मींझर व धरती धोरा री है।
विजयदान देथा: देखा की सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त कृति ‘बांता री फुलवारी’ है जिसमें राजस्थानी लोक कथाओं का संग्रह किया गया है। राजस्थानी लोकगीतों व कथाओं के शोध में इनका महत्वपूर्ण योगदान है।
कोमल कोठारी: राजस्थानी लोकगीतों व कथाओं आदि के संकलन एवं शोध हेतु समर्पित कोमल कोठारी को राजस्थानी साहित्य में किए गए कार्य हेतु नेहरू फैलोशिप प्रदान की गई। कोमल कोठारी द्वारा राजस्थान की लोक कलाओं, लोक संगीत एवं वाद्यों के संरक्षण, लुप्त हो रही कलाओं की खोज एवं उन्नयन तथा लोक कलाकारों को प्रोत्साहित करने हेतु बोरूंदा में रूपायन संस्था की स्थापना की गई।
सीताराम लालस: सीताराम लालस राजस्थानी भाषा के आधुनिका काल के प्रसिद्ध विद्वान रहे है। राजस्थानी साहित्य में सीताराम लालस की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि राजस्थानी शब्दकोश का निर्माण है।
मणि मधुकर: मणि मधुकर की राजस्थानी भाषा की सर्वाधिक प्रसिद्ध कृति पगफेरो है।
रांगेय राघव: राजस्थान के रांगेय राघ देश के प्रसिद्ध गद्य लेखक रहे है। इनके प्रसिद्ध उपन्यास घरोंदे, मुर्दों का टीला, कब तक पुकारूं, आखिरी आवाज है।
यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’: राजस्थान के उपन्यासकारों में सर्वाधिक चर्चित उपन्यासकार बीकानेर के यादवेंद्र शर्मा चंद्र ने राजस्थान की सामंती पृष्ठभूमि पर अनेक सशक्त उपन्यास लिखे। उनके उपन्यास ‘खम्मा अन्नदाता’ ‘मिट्टी का कलंक’ ‘जनानी ड्योढी’ ‘एक और मुख्यमंत्री’ व ‘हजार घोड़ों का सवार’ आदि में सामंती प्रथा के पोषक राजाओं व जागीरदारों के अंतरंग के खोखलेपन, षडयंत्रों व कुंठाओं पर जमकर प्रहार किये गए है।
राजस्थानी भाषा की पहली रंगीन फिल्म लाजराखो राणी सती की कथा चंद्र ने ही लिखी है। हिंदी भाषा में लिखने वाले राजस्थानी लेखकों में यादवेंद्रशर्मा चंद्र सबसे अग्रणी है।
चंद्रसिंह बिरकाली: ये आधुनिक राजस्थान के सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रकृति प्रेमी कवि है। इनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रकृति परक रचनाएं लू, डाफर व बादली है। चंद्रसिं ह बिरकाली ने कालिदास के नाटकों का राजस्थानी में अनुवाद किया है।
मेघराज मुकुल सेनाणी व श्रीलाल जोशी की आभैपटकी राजस्थानी भाषा की लोकप्रिय रचनाएं रही है।