राजस्थान का साहित्य Literature of Rajasthan | Rajasthan GK Notes

राजस्थान में साहित्य संस्कृत तथा प्राकृतभाषा में लिखा जान पड़ता है। पूर्व मध्ययुग (700-1000 ई.) में अपभ्रंश भाषा के विकास के कारण इसमें भी साहित्य लिखा गया।  कुछ विद्वान मानते हैं कि प्राकृत भाषा से डिगंल तथा डिंगल से गुजराती और मारवाडी़ भाषाओं का विकास हुआ।  संस्कृत से पिंगल तथा इससे ब्रज और खडी़ हिन्दी का विकास हुआ।
भाषा विद्वानों के अनुसार राजस्थान की प्रमुख भाषा मरू भाषा है। मरूभाषा को ही मरूवाणी तथा मारवाड़ी कहा जाता है।
डाॅ. सुनीति कुमार चटर्जी ने राजस्थानी भाषा के लिए डिगंल अथवा मारवाडी़ भाषा का प्रयोग किया है।
आठवी शताब्दी ई0 में उद्योतन सूरि ने अपनें ग्रन्थ कुवलयमाला में मरू, गुर्जर, लाट और मालवा प्रदेश की भाषाओं का उल्लेख किया है। जैन कवियों के ग्रन्थों की भाषा भी मरू भाषा है। 


राजस्थानी की कृतियों को 4 भागों में विभक्त किया जा सकता है:- 
(1) चारण साहित्य की कृतियाँ
(2) जैन साहित्य की कृतियाँ
(3) संत साहित्य की कृतियाँ 

(4) लोक साहित्य की कृतियाँ

चारण साहित्य:
➤ राजस्थानी भाषा का सबसे समृद्व साहित्य है।
➤ चारण कवियों ने इसका लेखन किया है। यह साहित्य वीर रस से ओत -प्रोत है।
➤ यह साहित्य प्रबन्ध काव्यों, गीतों, दोहों, सौरठों, कुण्डलियोें, छप्पयों, सवैयों आदि छन्दों में उपलब्ध है।
➤ चारणसाहित्य में अचलदास खींची री वचनिका, पृथ्वीराज रासो, सूरज प्रकाश, वंशभास्कर, बाकीदास ग्रन्थावली आदि प्रमुख हैं।

जैन साहित्य: 
➤ इस में वह साहित्य आता है, जो जैनमुनियों द्वारा लिखित है।
➤ वज्रसेन सूरिकृत-भरतेश्वर बाहुबलि घोर, शालिचंन्द्र सूरि कृत-भरतेश्वर बाहुवलिरास प्राचीन राजस्थानी ग्रन्थ हैं।
➤ कालान्तर में बृद्धिरास, जंबूस्वामी चरित, आबरास, स्थूलिभद्ररास, रेवंत गिरिरास, जीवदयारासु तथा चन्दनबाला रास आदि ग्रन्थों की रचना हुई।

संत साहित्य:
➤ राजस्थान के साहित्यिक विरासत में संत साहित्य का महत्वपूर्ण स्थान है।
➤ भक्ति आन्दोलन के समय दादू पंथियों और राम स्नेही सन्तों ने साहित्य का सृजन किया।
➤ इसके अतिरिक्त मीराबाई के पद, महाकवि वृंद के दोहे, नाभादास कृत वैष्णव भक्तों के जीवन चरित, पृथ्वीराज

➤ राठौड़ (पीथल) कृत वेलिक्रिसन रूकमणी री, सुन्दर कुंवरी के राम रहस्य पद, तथा सुन्दरदास और जांभोजी की रचनाएं आदि महत्वपूर्ण हैं।

लोक साहित्य:
➤ राजस्थान का लोक साहित्य भी समृद्व है।
➤ इसके अन्तर्गत लोकगीत, लोक गथाएं, लोक नाटय, पहेलियाँ, प्रेम कथाएँ और फडें आदि है।
➤ तीज, त्यौहार, विवाह, जन्म, देव पूजन और मेले अधिकतर गीत लोक साहित्य का भाग हैं।
➤ राजस्थान में ‘फड’ का प्रचलन भी हैं।
➤ किसी कपड़े पर लोक देव ता का चित्रण किया जाकर उसके माध्यम से ऐतिहासिक व पौराणिक कथा का प्रस्तुतिकरण किया जाना ‘फड़’ कहलाता है।
➤ देवनारायण महाराज की फड़ बापूजी री फड़ आदि इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

विधा की दृष्टि से राजस्थानी साहित्य को दो भागों में बाँटा जा सकता है- 
➤ (1) पद्य साहित्य (2) गद्य साहित्य।
➤ पद्य साहित्य में दूहा, सोरठा, गीत, कुण्डलियाँ, छंद छप्पय आदि आते हैं।
➤ गद्य साहित्य के अन्तर्गत वात, वचनिका, ख्यात दवावैत, वंशावली, पटृावली, पीढ़ियावली, दफ्तर, विगत एवं हकीकत आदि आते हैं।

राजस्थानी साहित्य की प्रमुख पुस्तकें
➤ हरिदास भार कृत-अजीतसिंह चरित
➤ उदयराम बारठ कृत-अवधान
➤ पदमनाभकृत- कान्हडदे प्रबन्ध
➤ दुरसा आढ़ा कृत-किरतार बावनी
➤ दलपति विजया या दौलत विजय कृत-खुमांण रासो
➤ शिवदास कृत-गजगुणरूपक
➤ अमरनाथ जोगी कृत-रालालैंग
➤ कवि धर्म कृत-जम्बूस् वामीरास,
➤ कविराज मुरारिदास कृत-डींगक कोश
➤ हरराजकृत— ढो़ला मारवाडी़
➤ चंद दादी कृत-ढो़ला मारूरा दोहा
➤ बांकीदास कृत- बांकीदास री ख्यात
➤ नरपति नाल्ह कृत- बीसलदेव रासो
➤ बीठलदास कृत-रूकमणिहरण
➤ श्यामलदास कृत-बीरविनोद
➤ ईसरदास कृत-हाला झाला री कुण्डलियाँ
➤ भांड़ड व्यास कृत-हमीरायण

Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url
sr7themes.eu.org