राजस्थान में वन्य जीव अभ्यारण {Wildlife Sanctuary in Rajasthan} राजस्थान GK अध्ययन नोट्स

  • केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान: केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान में स्थित एक प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान है। यह भारत का सबसे बड़ा पक्षी अभयारण्य है, जो 1964 में अभयारण्य और 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। यह राष्ट्रीय उद्यान 29 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। उद्यान में शीतकाल में यूरोप, अफ़ग़ानिस्तान, चीन, मंगोलिया तथा रूस आदि देशों से पक्षी आते है। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को यूनेस्को द्वारा संचालित ‘विश्व धरोहर कोष’ की सूची में शामिल कर लिया गया है। 5000 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर दुर्लभ प्रवासी पक्षी साइबेरियन क्रेन सर्दियों में यहॉ पहचते हैं, जो पर्यटकों का मुख्य आकर्षण होते हैं।
  • रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान: रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान के सवाईमाधोपुर ज़िले में स्थित है। यह उद्यान बाघ संरक्षित क्षेत्र है। यह राष्ट्रीय अभयारण्य अपनी खूबसूरती, विशाल परिक्षेत्र और बाघों की मौजूदगी के कारण विश्व प्रसिद्ध है। रणथंभौर उद्यान को भारत सरकार ने 1955 में ‘सवाई माधोपुर खेल अभयारण्य’ के तौर पर स्थापित किया था। बाद में देशभर में बाघों की घटती संख्या से चिंतित होकर सरकार ने इसे 1973 में ‘प्रोजेक्ट टाइगर अभयारण्य’ घोषित किया और बाघों के संरक्षण की कवायद शुरू की।
  • सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान: सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान के अलवर ज़िले में स्थित है। यह भारत के बाघ संरक्षित अभ्यारण्यों में से एक है। यह अभ्यारण्य 1958 ई. में बना था। इसके विकास के लिए ‘विश्व वन्यजीव कोष’ से भी सहायता प्राप्त हो रही है। राजस्थान के अलवर ज़िले में अरावली की पहाड़ियों पर 800 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला सरिस्का मुख्य रूप से वन्य जीव अभयारण्य और टाइगर रिजर्व के लिए प्रसिद्ध है।
  • राष्ट्रीय मरू उद्यान: यह जैसलमेर और बाड़मेर में स्थित है।यह क्षेत्रफल की दृष्टि से राज. का सबसे बड़ा अभ्यारण्य है। 4 अगस्त 1981 को इसकी स्थापना हुई। यह अभयारण्य आकल वुड फासिल्स पार्क के कारण प्रसिद्ध हैं। यहां 18 करोड़ वर्ष पुराने काष्ठावशेष है। गोडावन,चिंगारा, काले हिरण, लोमड़ी, एण्डरसन्स टाॅड, गोह, मरू बिल्ली पीवणा, कोबरा, रसलवाईपर आदि इसमें मिलते हैं।
  • राष्ट्रीय चम्बल वन्य जीव अभयारण्य: राष्ट्रीय चम्बल वन्य जीव अभयारण्य राजस्थान के कोटा से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह अभ्यारण्य 280 वर्ग किलोमीटर के जल क्षेत्र में फैला हुआ है। दक्षिण पूर्वी राजस्थान में चम्बल नदी पर राणा प्रताप सागर से चम्बल नदी के बहाव तक इसका फैलाव है। यह वन्य जीव अभयारण्य घड़ियालों और पतले मुँह वाले मगरमच्छों के लिए बहुत लोकप्रिय है।
  • कैला देवी वन्यजीव अभयारण्य: कैला देवी वन्यजीव अभयारण्य करौली में स्थित है, जो राजस्थान-मध्य प्रदेश सीमा से लगा हुआ है। इस अभयारण्य में चिंकारा, जंगली सुअरों और सियार के अलावा बाघ, तेंदुओं, स्लॉथ भालू, हाइना, भेड़ियों और साम्भर को आसानी से विचरण करते हुए देखा जा सकता है। ये वन्य जीव अभ्यारण 676.40 वर्ग कि.मी. के एक क्षेत्र में फैला हुआ है। अभयारण्य के पश्चिमी किनारे पर बनास नदी बहती है, जबकि दक्षिण-पूर्व दिशा में चम्बल नदी का प्रवाह है।
  • माऊण्ट आबू अभयारण्य: इस अभयारण्य में जंगली मुर्गा तथा एक विशेष प्रकार का पौधा ‘डीरकिलपटेरा आबू एनसिस’ पाया जाता हैं। माऊण्ट आबू अभयारण्य की मान्यता समाप्त होने के कगार पर हैं।
  • सज्जनगढ़ अभयारण्य: यह उदयपुर में स्थित हैं। यह राजस्थान का सबसे छोटा अभयारण्य हैं। इसे मृगन के रूप में स्थापित किया गया था। सज्जन सिंह उदयपुर के महाराणा थे जिनके प्रयासों से सज्जन कीर्ति सुधारक नामक अखबार चलाया गया।
  • रावली-टाड़गढ़ अभयारण्य: यह अजमेर,पाली व राजसमन्द में फैला हुआ हैं। यहां एक किला भी हैं, जिसे टाड़गढ़ का किला कहते हैं, जो अजमेर में हैं। इस किले का निर्माण कर्नल जेम्स टॉड ने करवाया था। यहां स्वंतत्रता आंदोलन के समय राजनैतिक कैदियों को कैद रखा जाता था। विजयसिंह पथिक उर्फ भूपसिंह को इसमें कैद रखा गया था।
  • बस्सी अभयारण्य: यह चित्तौड़गढ़ में स्थित हैं। चित्तौड़गढ़ की बस्सी काष्ठ कला (कावड़, गणगौर, कठपुतली) के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • नाहरगढ़ अभयारण्य: यह जयपुर में स्थित हैं। यह एक जैविक उद्यान हैं, जहां घड़ियाल प्रजनन केन्द्र भी है। इसमे चिंकारे (हिरना की एक प्रजाति) भी विचरण करते है।
  • अमृतादेवी कृष्ण मृग पार्क: यह जोधपुर मे खेजड़ली गांव के आस-पास स्थित हैं। यह जोधपुर जिले के खेजडली मे लुप्त हो रहे हिरण प्रजाति के 500 काले हिरणो के संरक्षण के लिए यह मृगवन लाघभाग 50 हेक्टयर क्षेत्र मे विकसित किया गया है । इस पार्क का नामकरण आज से लगभग 250 वर्ष पूर्व वृक्षो को बचाने के लिए अपने प्राण देने वाली अमर शहीद अमृता देवी के नाम पर किया गया है। भाद्रपद शुक्ल पक्षी की नवमी को खेजड़ली गांव में मेला भरता हैं।
  • सोरसन:- यह बांरा में स्थित हैं, गोड़ावन पक्षी का संरक्षण स्थल हैं।
  • सोंखलिया/सोंकलिया:- यह अजमेर में स्थित हैं, गोड़ावन पक्षी का संरक्षण स्थल हैं।
  • उजला:- यह जैसलमेर में स्थित हैं, काले हिरणों का संरक्षण स्थल है।
  • फिटकासनी:- यह जोधपुर में स्थित हैं।
  • धौरीमना:- यह बाड़मेंर में स्थित हैं।
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