- लोक देवता तेजाजी का जन्म नागौर जिले में खड़नाल गाँव में ताहरजी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था
- तेजाजी राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात प्रान्तों में लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं। किसान वर्ग अपनी खेती की खुशहाली के लिये तेजाजी को पूजता है।
- तेजाजी के प्रमुख मंदिरों में खरनाल नागौर में तेजाजी का मंदिर एवं सुरसुरा अजमेर में तेजाजी का धाम है
- लोग तेजाजी के मन्दिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं और दूसरी मन्नतों के साथ-साथ सर्प-दंश से होने वाली मृत्यु के प्रति अभय भी प्राप्त करते हैं।
- स्वयं तेजाजी की मृत्यु, जैसा कि उनके आख्यान से विदित होता है, सर्प- दंश से ही हुई थी। बचनबद्धता का पालन करने के लिए तेजाजी ने स्वयं को एक सर्प के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया था। वे युद्ध भूमि से आए थे और उनके शरीर का कोई भी हिस्सा हथियार की मार से अक्षत् नहीं था। घावों से भरे शरीर पर अपना दंश रखन को सर्प को ठौर नजर नहीं आई, तो उसने काटने से इन्कार कर दिया। वचन-भंग होता देख घायल तेजाजी ने अपना मुँह खोल कर जीभ सर्प के सामने फैला दी थी और सर्प ने उसी पर अपना दंश रख कर उनके प्राण हर लिए थे।
- तेजाजी के देवरो में साँप के काटने पर जहर चूस कर निकाला जाता है तथा तेजाजी की तांत बाँध का सर्पदंश का इलाज किया जाता है।
- तेजाजी की घोड़ी का नाम ‘लीलण’ था
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