1. ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह, अजमेर
- ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह अजमेर में स्थित है
- मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म 1941 में और निधन 1236 ई॰ में हुआ था, उन्हें ग़रीब नवाज़ के नाम से भी जाना जाता है।
- हज़्रत ख्वाजा गरीब नवाज़ विश्व् के महान सूफी सन्त माने जाते हैं। गरीब नवाज़ का असली नाम “ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन” है, और चिश्तिया तरीक़े या सिलसिले से हैं इस लिए “चिश्ती” कहलाते हैं।
- मोईनुद्दीन चिश्ती हिन्दुस्तान का रुख किया। मुल्तान में पान्च वर्श रहे, यहां इन्हों ने संस्कृत भाषा सीखी। थोडे दिन लाहोर में रुके, बाद में अजमेर आये। अपने हमराह मोइज़ुद्दीन के साथ अजमेर अपना निवास स्थल बना लिया।
- वो भारतीय उपमहाद्वीप के चिश्ती क्रम के सूफ़ी सन्तों में सबसे प्रसिद्ध सन्त थे। मोइनुद्दीन चिश्ती ने भारतीय उपमहाद्वीप में इस क्रम की स्थापना एवं निर्माण किया था। जब इनका उर्स होता है तो देश विदेशों से अक़ीदतमन्द लोग इन्के दर्गाह पर हाज़री देते हैं और दुआयें कर्ते हैं।
2. नरहड़ शरीफ की दरगाह, झुंझुनू
- नरहड़ शरीफ की दरगाह को शकरबार पीर की दरगाह एवं बांगड़ के धणी भी कहा जाता है
- अजमेर के गरीब नवाज ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की तरह ही राजस्थान में झुंझुनूं जिले की नरहड़ शरीफ भी कौमी एकता की अनूठी मिसाल है। जन्माष्टमी के दिन नरहड़ शरीफ में लगने वाले मेले में हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों के लाखों अनुयायी जायरीन के लिए उमड़ते हैं।
- जायरीन में प्रवेश करने वाले प्रत्येक जायरीन को यहां तीन दरवाजों से गुजरना पड़ता है। पहला दरवाजा बुलंद दरवाजा है, दूसरा बसंती दरवाजा और तीसरा बगली दरवाजा है। इसके बाद मजार शरीफ और मस्जिद है।
- बुलंद दरवाजा 75 फिट ऊंचा और 48 फिट चौड़ा है। मजार का गुंबद चिकनी मिट्टी से बना हुआ है, जिसमें पत्थर नहीं लगाया गया है। कहते है कि इस गुंबद से शक्कर बरसती थी, इसलिए बाबा को शकरबार नाम मिला।
3. जामा मस्जिद, भरतपुर
- जामा मस्जिद, भरतपुर का नक्शा दिल्ली की जामा मस्जिद के समान है
- इसका निर्माण लाल पत्थरों से किया गया है
- इस मंदिर का प्रवेश द्वार बुलंद दरवाजा कहलाता है
4. ढाई दिन का झोपड़ा, अजमेर
- ढाई दिन का झोपड़ा एक मस्जिद है जो अजमेर में स्थित है।
- इसके साथ कई मान्यताएँ प्रचलित हैं। किसी का कहना है कि इस मस्जिद को बनने में ढाई दिन का वक्त लगा था, इसलिए इसे अढ़ाई-दिन का झोपड़ा कहा गया। बहुत से लोग ये मानते हैं कि, चूँकि हर साल यहाँ ढाई साल का मेला लगता था, इसलिए इसे यह नाम दिया गया।
- पहले यह संस्कृत कॉलेज था लेकिन मोहम्मद गौरी ने इसे 1198 में मस्जिद में तब्दील कर दिया। इस मस्जिद की डिजाइन अबु बकर ने तैयार की थी। मस्जिद का अंदरूनी हिस्सा किसी मस्जिद की तुलना में मंदिर की तरह दिखता है।
- इस खंडहरनुमा इमारत में 7 मेहराब एंव हिन्दु-मुस्लिम कारीगिरी के 70 खंबे बने हैं तथा छत पर भी शानदार कारीगिरी की गई है।
5. फ़तहगंज का मक़बरा, अलवर
- फ़तहगंज का मक़बरा अलवर शहर में स्थित है, यह 5 मंजिला है।
- फ़तहगंज का मक़बरा दिल्ली में स्थित अपनी समकालीन सभी इमारतों में सबसे उच्च कोटि का है।
- फ़तहगंज का मक़बरा भरतपुर रोड के नज़दीक, रेलवे लाइन के पार पूर्व दिशा में स्थित है।
6. राजस्थान के अन्य मकबरे एवं मस्जिदें
- एक मीनार मस्जिद = जोधपुर
- अकबर की मस्जिद, जयपुर
- नोहर खां की मीनार = कोटा
- ख्वाजा फ़ख़रुद्दीन की दरगाह = सरवाड़, अजमेर
- काकाजी की दरगाह, प्रतापगढ़
- बड़े पीर की दरगाह = नागौर
- मीठेशाह की दरगाह = गागरोन, झालावाड़
राजस्थान GK नोट्स